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________________ सं.छा.: अयतं स्वपंश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति। बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्॥४॥ शब्दार्थ - (अजयं) ईर्यासमिति का उल्लंघन करके (सयमाणो) शयन करता हुआ साधु (पाणभूयाइं) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म) ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्म का (कडुअं फलं) कटु फल (होइ) होता है। अजयं भुंजमाणो अ, पाणभूयाइं हिंसइ। बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||५|| सं.छा.ः अयतं भुञ्जानश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति। - बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्।।५।। शब्दार्थ - (अजयं) एषणासमिति का उल्लंघन करके ( जमाणो) भोजन करता हुआ साधु (पाणभूयाइं) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म) ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्मका (कडुअं फलं) कटु फल (होइ) होता है। अजयं भासमाणो अ, पाणभूयाई हिंसइ। बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ||६|| . सं.छा.ः अयतं भाषमाणश्च, प्राणभूतानि हिनस्ति। . बध्नाति पापकं कर्म, तत्तस्य भवति कटुकं फलम्।।६।। शब्दार्थ - (अजयं) भाषासमिति का उल्लंघन करके (भासमाणो) बोलता हुआ साधु (पाणभूयाइं) एकेन्द्रिय आदि जीवों की (हिंसइ) हिंसा करता है (य) और (पावयं कम्म) ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को (बंधइ) बांधता है (से) उस (तं) पापकर्म का (कडुअं फलं) कटु फल (होइ) होता है। __साधु अथवा साध्वी ईर्यासमिति का उल्लंघन' करके अजयणा से गमन करते, खड़े रहते, बैठते, शयन करते, एषणासमिति का उल्लंघन करके अयत्ना से भोजन करते, और भाषासमिति का उल्लंघन करके अयत्ना से बोलते हुए एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा करते हैं और ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों को बांधते हैं,और उन पापकर्मों का संसार में परिभ्रमण रूप कटु फल मिलता है। कहं चरे? कहं चिठे?, कहमासे? कहं सर?| कहं भुंजतो भासंतो?, पावं कम्मं न बंधड़ ।।७।। सं.छा.ः कथं चरेत्कथं तिष्ठेत्कथमासीत कथं स्वपेत्। १. नाश। २. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, नामकर्म, गोत्रकर्म, अन्तरायकर्म और आयुष्य कर्म ये आठ कर्म हैं। इनमें नाम, गोत्र, वेदनीय, आयु ये चार भवोपनाही कर्म कहलाते हैं । श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 44
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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