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________________ ब्रह्मचारी मुनि हाथ, पैर से छिन्न, नाक, कान से छिन्न, ऐसी सौ वर्ष की आयुवाली वृद्धा नारी से भी परिचय न करे । युवा नारियों के परिचय का तो सर्वथा निषेध ही है ॥५६॥ वर्तमान में उपधान आराधना के विषय में विचार करना आवश्यक है। आत्मकल्याणार्थी मुनि के लिए विभूषा, स्त्रीजन परिचय, प्रणीत रस भोजन, तालपूट विष समान है। तालपूट विष शीघ्र मारक है। वैसे ये तीनों शीघ्रता से भावप्राणं नाशक है। ब्रह्मचर्य घातक है ॥५७॥ आत्मार्थी मुनि स्त्री के मस्त्कादि अंग नयनादि प्रत्यंग की आकृति को, सुंदर शरीर को, उसके मनोहर नयनों को न देखे। क्योंकि वे विषयाभिलाष की वृद्धिकारक है । ५८|| पुद्गल परिणाम का चिंतन : विसएस मणुसु, पेमं नाभिनिवेस । अणिच्चं तेसिं विज्ञाय परिणामं पुग्गलाण य || ५९|| सं.छा.ः विषयेषु मनोज्ञेषु, प्रेमं नाभिनिवेशयेत् । अनित्यं तेषां विज्ञाय, परिणामं पुद्गलानां च ॥ ५९ ।। भावार्थ : जिन वचनानुसार शब्दादिक परिणाम रूप में परिणत पुद्गल के परिणाम को. अनित्य जानकर मनोज्ञ विषयों में राग न करें एवं अमनोज्ञ शब्दादि विषयों में द्वेष न करें। क्योंकि सुंदर पुद्गल कारण की प्राप्ति से असुंदर, असुंदर पुद्गल कारण की प्राप्ति से सुंदर / मनोहर हो जाते हैं। अतः पुद्गल परिणामों में राग द्वेष न करें ।। ५९ ।। पुग्गलाणं परिणामं, तेसिं नच्चा जहा तहा। विणीअ-तण्हो विहरे, सीईभूषण अप्पणा ||६|| सं.छा.ः पुद्गलानां परिणामं, तेषां ज्ञात्वा यथातथा । विनीततृष्णो विहरेत्, शीतीभूतेन चात्मना ।। ६० ।। भावार्थ ः आत्मार्थी मुनि पुद्गलों की शुभाशुभ परिणमन क्रिया को जानकर, उसके उपभोग में तृष्णारहित होकर एवं क्रोधादि अग्नि के अभाव से शीतल होकर विचरें ॥ ६०॥ प्रव्रज्या के समय के भावों को अखंडित रखना : इसाई निक्खतो, परिआयठ्ठाण -मुत्तमं । तमेव अणुपालिज्जा, गुणे आयरिअ - संमर ||६१|| सं.छा.ः यया श्रद्धया निष्क्रान्तः, पर्यायस्थानमुत्तमम्। तामेवानुपालयेद्, गुणेष्वाचार्यसम्मतेषु ॥ ६१ ॥ भावार्थ : उत्तम चारित्र ग्रहण करते समय जो आत्मश्रद्धा, जो भाव थे, उसी श्रद्धा को पूर्ववत् अखंडित रखकर चारित्र पालन करें और आचार्य महाराज, तीर्थंकर भगवंत आदि श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 138
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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