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________________ ८२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक अलाउद्दीन ने पद्मावती को पाने की इच्छा से एक दूत चित्तौड़ भेजा। रतनसेन ने साफ़ मना कर दिया। अलाउद्दीन सेना लेकर आ धमका । आठ वर्ष तक वह गढ़ को न जीत सका । अन्त में उसने एक चाल चली। उसने सन्धिपत्र लिखकर गढ़ में प्रवेश किया। वहाँ दर्पण में पद्मावती के रूप को देखकर वह मूच्छित हो गया। पुनः राजा जब उसे गढ़-द्वार तक छोड़ने आया तो उसने उसे बन्दी बना लिया। वह राजा को दिल्ली ले गया और जेल में डाल दिया। ___ सभी रानियाँ दुःखी थीं। राजा देवपाल ने अवसर देखकर पद्मावती के पास दूतियों द्वारा घृणित प्रस्ताव भेजा, जिसमें वह असफल रहा। पद्मावती ने गोरा-बादल से मिलकर एक युक्ति सोची। उसने सोलह सो पालकियों को सजवाकर उनमें राजपूतों को सवार करा दिया । पालकी उठाने वाले भी राजपूत ही थे । वह दिल्ली पहुँची । बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ । रानी की प्रार्थना पर उसने राजा रतनसेन के बंधन काट दिये। उसे बादल और कुछ वीरों के साथ चितौड़ भेज दिया गया। उधर गोरा ने वीरता के साथ अलाउद्दीन की सेना का सामना किया। परन्तु सभी मारे गये। चित्तौड़ आने पर जब रतनसेन ने देवपाल का घृणित कार्य सुना तो उसने देवपाल पर. आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में देवपाल और रतनसेन दोनों ही मारे गये। नागमती और पद्मावती दोनों ही अपने पति के साथ सती हो गईं। तदनन्तर अलाउद्दीन अपनी सेना के साथ चित्तौड़ पर चढ़ आया। बादल ने उसका सामना किया परन्तु उसके साथ समस्त राजपूत काम आ गये । स्त्रियों ने भी आत्मदाह कर लिया। अलाउद्दीन ने जब गढ़ में प्रवेश किया तो सर्वत्र उसे राख को ढेरियाँ ही दिखाई पड़ी। चित्ररेखा'-पदमावत के रचयिता जायसो को ही यह रचना है । चित्ररेखा भी एक प्रेम-कथा है । विषय की दष्टि से यह एक छोटी रचना है। प्रारम्भ में कवि पदमावत को शैली में ही जगत् के सर्जनहार की स्तुति करता है। इसके बाद महम्मद साहब, चार यार, पैगम्बर आदि १. जायसीकृत चित्ररेखा, सं०-शिवसहाय पाठक, प्रका०-हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी, ई० १९५९.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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