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________________ प्रास्ताविक : २३ ९. कुतुबनकृत मृगावती-सं०-डा० शिवगोपाल मिश्र, हि० सा० सम्मेलन, प्रयाग, शक सं० १८८५. १०. मधुमालतोवार्ता-चतुर्भुजदासकृत, सं० --डा० माताप्रसाद गुप्त, ___ ना० प्र० सभा काशी, सं० २०२१. ११. रुक्मिणीपरिणय-रघुराज सिंह जूदेवकृत, सं०-गंगाविष्णु, श्रीकृष्णदास लक्ष्मी बैंकटेश्वर, कल्याण-मुंबई, सं० १९८१. १२. बेलिक्रिसन रुक्मिणी री-प्रिथीराजकृत, सं०-आनन्द प्रकाश दीक्षित, विश्वविद्यालय प्रकाशन, गोरखपुर. १३. कथा हीर राँझनि को-कवि गुरुदास गुणीकृत, सं०-सत्येन्द्र तनेजा, पटियाला, सन् १९६१. १४. विरहवारीश माधवानल कामकन्दला चरित्रभाषा-बोधाकृत, नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ. १५. इन्द्रावती-नूरमुहम्मदकृत, सं०-श्यामसुन्दरदास, ना० प्र० सभा, काशी. १६. ढोला-मारू रा दूहा-ना० प्र० सभा से प्रकाशित. १७. अनुरागबाँसुरी-नूरमुहम्मदकृत, सं० --रामचन्द्र शुक्ल, चन्द्रबली पांडेय. १८. उसमानकृत चित्रावली--सं०-जगन्मोहन वर्मा. १९. चित्ररेखा-जायसोकृत, सं०-शिवसहाय पाठक, हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी. २०. बीसलदेवरास-नरपति नाल्हकृत, सं०-माताप्रसाद गुप्त तथा अगरचन्द नाहटा. इनके अतिरिक्त उषाहरण, रूपमंजरी, बात सयाणी चारिणी री, सत्यवतो का कथा, प्रेमदर्पण, हंसजवाहिर और भाषा-प्रेमरस आदि प्रेमाख्यानं भी संपादित-प्रकाशित हुए हैं। हिन्दी प्रेमाख्यानकों का उक्त कार्य प्रेमाख्यानकों की परम्परा को जीवित रखने के लिए आवश्यक होने का साथ-साथ उनका अध्ययन करने वालों के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रेमाख्यानकों के संदर्भ में शोधपूर्ण कार्यों की कमी बराबर अखरती है। संपादित कार्यों की सूची में संपादन और शोधपूर्ण भूमिकाओं को प्रस्तुत करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य 'रसरतन' के सम्पादक डॉ० शिवप्रसाद सिह एवं 'चंदायन' के संपादक डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त का है।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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