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३४८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
की समानधर्मा प्रवृत्तियों के उद्घाटन द्वारा हिन्दी की इस महत्त्वपूर्ण काव्यविद्या के अध्ययन के कुछ नये क्षितिज भी उद्घाटित करता है।
शैली और शिल्प को व्यापक अर्थ में प्रस्तुत करते हुए वस्तुतः इस प्रबंध के द्वारा लोकभाषा के पूर्व और पश्चात् कालावधि. . के बीच के अन्तराल को दूर करना हो इस प्रबंध का मुख्य उद्देश्य रहा है।