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________________ ३४६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक हिन्दी में प्रेमाख्यानक प्रायः दो प्रकार के लिखे गये : एक सूफी कवियों की मसनवी पद्धति पर आधारित, दूसरे शुद्ध भारतीय पद्धति के। इन दोनों प्रकार के प्रेमाख्यानकों का शैलोशिल्प बहुत साम्य रखता है। ऊपर-ऊपर से देखने पर सूफी प्रेमाख्यान दोहे-चौपाई में लिखे गये, उनमें छन्दवैविध्य कम है, लोग उनकी रचना के पीछे मसनवी शैली का प्रभाव भी देखते हैं, पर मंगलाचरण, गुरुवन्दना, कविवंशपरिचय, प्रेम की विभिन्न अवस्थाएं, वस्तुचित्रण, नगर, भवन, चित्रकशाला, अश्व, रथ तथा युद्ध के दूसरे उपादान, सरोवर, बाग-बगीचे के वर्णनों के अलावा कथाभिप्रायों की दष्टि से भी ये कथाकाव्य अपभ्रंश कथाओं का अनुसरण करते हुए दिखाई पड़ते हैं । शुद्ध हिन्दू प्रेमाख्यानकों में तो यह प्रभाव पर्याप्त स्पष्ट और घनिष्ठ रूप से परिलक्षित होता ही है। . ४. प्रतीकयोजना सूफी काव्यों की एकदम नई वस्तु मानी जाती है और उस पर अनेकानेक विद्वानों ने बहुत विस्तार से विचार भी किया है, किन्तु क्या प्रतीकविद्या अभारतीय है ? प्रतीक भारतीय दर्शन, धर्म और शास्त्रों के बहुपरिचित तत्त्व हैं जिनका उपयोग हमारे देश में ऋग्वेद से लेकर आज तक अनेकानेक रूपों में होता रहा है। यह सही है कि दार्शनिक प्रतीकों को काव्य का अनिवार्य उपादान बनाने की कोशिश नहीं की गई। किन्तु क्या बाणभट्ट की कादम्बरी का अक्षोदसरोवर प्रेमह्रद का प्रतीक नहीं है ? क्या कादम्बरी स्वयं मांसल वासनामलक प्रेम का और महाश्वेता तपःपूत चिन्मय प्रेमतत्त्व का प्रतीक नहीं है ? डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने 'कादंबरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन' में इस तरह के प्रतीकों पर विस्तृत विचार किया हैं। यह सही है कि संस्कृत साहित्य में प्रतीकात्मकता लाने का सचेष्ट प्रयत्न कम हुआ। अपभ्रंश में और भक्ति आन्दोलन से प्रभावित हिन्दी साहित्य में इस प्रकार का प्रचुर प्रयत्न हुआ है । अपभ्रंश में तो 'मयणपराजयचरिउ' जैसे काव्य नितान्त प्रतीकात्मक हैं। अतः सूफी कथाकाव्यों की प्रतीक पद्धति को भी अपभ्रंश कथाकाव्यों को प्रतीक पद्धति से सीधे जोड़ा जा सकता है। ५. अपभ्रंश प्रेमाख्यानकों की सीमा में कई तरह के काव्यरूपों में लिखे
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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