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________________ अध्याय १ प्रास्ताविक भारतीय वाङ्मय में ही नहीं अपितु विश्व वाङ्मय में प्रेम-प्रसंग अधिकांश काव्यों की विषयवस्तु रहा है । नहीं कहा जा सकता कि प्रेम तत्त्व की उत्पत्ति और अनुभूति मानव हृदय में कब कैसे हुई | इतना सच है कि भारतीय साहित्य में वैदिककाल से वर्तमान समय तक प्रेम को लेकर चर्चाएँ हुईं, आख्यानक, चरित, चम्पू एवं कथा- काव्यों से लेकर उपन्यास, कहानी और वार्ताएँ तक लिखी गईं । वैदिककाल के पुरुरवा - उर्वशी, यम यमी संवाद, श्यावाश्य आदि, संस्कृतकाल के अथवा संस्कृत भाषा में रचित पुरुरवा - उर्वशी, नल-दमयन्ती, दुष्यन्त शकुन्तला, उषाअनिरुद्ध, कृष्ण-रुक्मिणी, अर्जुन-सुभद्रा, भीम-हिडिम्बा आदि के प्रेम प्रसंगों को आधार बनाकर लिखे गये काव्यों तथा नैषधचरित, वासवदत्ता, कादम्बरी आदि प्रेमकृतियों, प्राकृतं भाषा में प्रणीत तरंगवईकहा, लोलाबईकहा, आरामसोहाकहा, सिरिवालकहा, अंजना सुन्दरीकहा, जयसुन्दरो कहा, भव्यसुन्दरीकथा, पद्मश्रीकथा, विश्वसेनकुमारकथा, सुरसुन्दरकथा आदि अपभ्रंश भाषा में प्रणीत भविसयत्तकहा, पुरंदरकहा, जिनरत्तिकहा, सुअंधदसमीकहा, विलासवईकहा, सिरिवालकहा, वर्द्धमानकथा, निदुसत्तमीकहा, सुदंसणचरिउ, जंबुसामिचरिउ, पासणाहचरिउ, करकंडुचरिउ, णायकुमारचरिउ, जसहर चरिउ, पउमसिरिचरिउ, सुलोयणाचरिउ, भविसयत्तचरिउ, सनत्कुमारचरित, णे मिनाहचरिउ, चंदप्पहचरिउ आदि का उक्त सन्दर्भ में उल्लेख किया सकता है । हिन्दी का प्रेमाख्यान साहित्य भी पूर्व प्रेमाख्यानकों की शृंखला में महत्त्वपूर्ण कड़ी के समान जुड़ा हुआ है । गोस्वामी तुलसीदास जी के पहले लोकभाषा में प्रेम-कथानकों का ऐसा साहित्य काफी अधिक संख्या में लिखा गया था जिसके कथा- अंश का आधार लोकप्रचलित कथानक
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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