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________________ इनके अतिरिक्त आगमों के व्याख्या ग्रंथों में भी अनेक सांधओं और तपस्वियों का उल्लेख किया गया है। उनमें ससरक्ख साधुओं को उड्डंग और बोडिय (बोटिक) के साथ गिनाया गया है। ये तीनों ही किसी प्रकार का परिग्रह नहीं रखते थे और पाणितल में भोजन करते थे। ससरक्ख (सरजस्क) साधु विद्यामंत्र आदि में भी कुशल होते थे । वर्षा ऋतु में जैसे उदक शौकरिक मिट्टी और फोटिक गोबर और नमक आदि का संग्रह करते थे, वैसे ही ये लोग राख का संग्रह करके रखते थे। अस्थि सरजस्कों के बारे में कहा गया है कि ये बहुत सा भोजन करते थे और बहुत गंदे रहते थे । उदक शौकरिक शुचिवादी भी कहे जाते थे । यदि कोई उन्हें स्पर्श कर लेता था, तो वे ६४ बार स्नान करते थे। वारिखल परिव्राजक अपने पात्रों को बारह बार और वानप्रस्थ तापस छह बार मिट्टी लगाकर साफ करते थे । कर्मकार भिक्षु भिक्षा के लिए देवंद्रोणी लेकर चलते थे। इनके सिवाय कोई नमक छोड़ने से, कोई लहसन, प्याज, ऊँटनी का दूध, गोमांस और मद्य इन पाँच वस्तुओं के त्याग से और कोई विकाल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति मानता था। कुछ वन में झोपड़ियों में अथवा गाँव के समीप निवास करते थे। वे प्राणी हत्या को पाप नहीं मानते थे। उनकी मान्यता थी-मैं ब्राह्मण हूँ, अतः हन्तव्य नहीं हूँ । केवल शूद्र आदि ही हन्तव्य है । शूद्र की हत्या करके प्राणायम कर लेना पर्याप्त है। बिना हड्डी वाले गाड़ी भरे शूद्र जीवों को मारकर यदि ब्राह्मण को भोजन करा दें, तो इतना प्रायश्चित पर्याप्त है। . इसी प्रकार आगम साहित्य में और भी अनेक साधुओं के उल्लेख मिलते हैं। उनके आचार, विचार, वेश आदि का वर्णन करना एक स्वतंत्र विषय है । यहाँ तो संकेत मात्र के लिए कुछ एक परंपराओं की जानकारी दी है। * अन्य मतमतान्तर आगमों में अन्य मतमतान्तरों और मिथ्यादृष्टियों का उल्लेख है । आचारांग में तो किसी विशेष नाम पूर्वक नहीं, अपितु ‘एगे' अर्थात् कुछ लोगों के रूप में है, जिसका विशेष स्पष्टीकरण चूर्णि अथवा वृत्ति में किया गया है । लेकिन सूत्रकृतांग में इनका नाम पूर्व उल्लेख है और इनके निरसन के लिए ये मत मिथ्या है, ये मत प्रवर्तक - आरंभी हैं, प्रमादी हैं, विषयासक्त हैं, इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसके लिए किसी विशेष प्रकार की तर्कशैली का प्रयोग प्राप्त नहींवत् है। सूत्रकृतांग में चार मतों का उल्लेख है-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी (२३८)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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