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________________ * प्रस्थान समारोह ___ व्यापारी सार्थ बनाकर अथवा जहाजों द्वारा जब दूर विदेशों में व्यापार करने के लिए जाते थे, तब उन्हें समारोह के साथ भेंट आदि देकर विदा किया जाता था। व्यापारी शुभ तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त आदि देखकर इष्ट मित्रों को भोजन के लिए आमंत्रित करते थे। वे छकड़ों में माल लदवाते थे तथा साथ में चावल, आटा, तेल, गुड़, घी, गोरस, जल, जल के पात्र, औषधि, तृण, काष्ठ, आवरण (तिरपाल आदि), प्ररहण आदि भरकर यानों की पूजा आदि करके इष्ट मित्रों, स्वजनों आदि से मिलकर प्रस्थान करते । मित्रजन उन्हें बिदाई देते समय भेट देते थे। जलमार्ग से जाने वाले लोग जहाजों पर पुष्प चढ़ाते, सरस रक्त चंदन के पाँचों ऊँगलियों के पोत पर छापे लगाते, धूप जलाकर समुद्र की पूजा करते और फिर उचित स्थान पर ध्वजा फहराकर शुभ शकुन ग्रहण कर राजा की आज्ञा प्राप्त कर जहाजों पर सवार होते थे। उस समय स्तुति पाठक मंगल गान करते थे और जहाज के वाहक, कर्णधार, कुक्षिधार और गमज्जिक आदि कर्मचारी अपने-अपने स्थान पर काम में लगकर लंगर छोड़ देते थे। समुद्र में तूफान आने पर कभी-कभी जहाज डूब भी जाते थे। ऐसे संकट के समय वणिक लोग धूप आदि द्वारा देवता की पूजा करके उसे शान्त करते थे । जहाज डूब जाने पर भाग्य योग से कोई बचकर कहीं से कहीं पहुँच जाता था। * मुद्रा माल का मूल्य रुपए-पैसे के रूप में निर्धारित था। आगम साहित्य में अनेक प्रकार की मुद्राओं, सिक्कों तथा उनकी अन्तर्देशीय विनिमय दर निर्धारण का उल्लेख मिलता है । उपासक दशा में हिरण्य-सुवर्ण का एक साथ उल्लेख है । वैसे सुवर्ण का नाम अलग से भी आता है । अन्य मुद्राओं में कार्षापण (काहावण), मास, अर्द्धमास और रूपक का उल्लेख है। पण्णग और पायंक मुद्राओं का उल्लेख भी मिलता है। उत्तराध्ययन सूत्र में सुवर्णमासय (सुवर्णमाषक) का नाम आता है । संभवत: यह छोटा सिक्का हो । बृहत्कल्प भाष्य और उसकी वृत्ति में अनेक प्रकार के सिक्कों का उल्लेख है। सुवर्णमाषक संभवत: सबसे छोटा सिक्का था और दक्षिणापथ में प्रचलित था। चांदी के सिक्कों में द्रव्य का उल्लेख मिलता है। भिल्लमाल (भीनमाल जिला जोधपुर) में यह सिक्का प्रचलित था। सोने के सिक्कों में दीनार अथवा केवडिक का उल्लेख प्राप्त होता है । उसका प्रचार पूर्व देश में था। मयूरांक राजा ने अपने नाम से चिह्नित दीनारों को गाड़कर रखा था। खोटे रूपकों का भी प्रचलन था। सुनार (हैरकण्य) अंधेरे में भी खोटे सिक्कों को पहचान लेते थे। (२१८)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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