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________________ जयाकुसुम, बंधुजीवन के पुष्प, हिंगुल (सिंदूर), कुंकुम (केशेर), नील कमल, शिरीष के पुष्प तथा अंजन आदि द्रव्यों से रंग बनाये जाते थे । रंगों में कृष्ण, नील, लोहित, हरिद्र और शुक्ल रंगों का उल्लेख है । इससे पता चलता है कि रासायनिक रंग भी तैयार किया जाते थे। रंगे हए कपड़े पहनने का रिवाज था। * आभूषण निर्माण स्त्रियाँ और पुरुष आभूषण के शौकीन थे। वे अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात के आभूषण धारण करते थे। इसलिए सुनारों (सुवर्णकारों) का व्यवसाय खूब चलता था। सुनार बेईमानी भी करते थे । कीमिया बनाने वालों (धातुवाइय) का उल्लेख मिलता है। धातु के पानी से तांबे आदि को सिक्त करके सुवर्ण बनाने की विधि प्रचलित थी। ___ आगमों में चौदह प्रकार के आभूषणों का उल्लेख मिलता है- हार (अठारह लड़ी वाला), अर्धहार (नौ लड़ियों वाला), एकावली (एक लड़ी का हार), कनकावली, रत्नावली, मुक्तावली, केयूर, कडय (कड़ा), तुडिय (बाजूबंद), मुद्रा (अंगूठी); कुंडल, उदसूत्र, चूड़ामणि और तिलक। पुरुषों द्वारा हार, अर्धहार, तिसरय (तीन लड़ियों का हार), प्रलंब (नाभि तक लटकने वाला हार), कटिसूत्र (करधनी), ग्रैवेयक (गले का हार), अंगुलीयक (अंगूठी), कचाभरण (बालों में लगाने का आभरण), मुद्रिका, कुण्डल, मुकुट, वलय (चीरत्व सूचक कंकण), अंगद (बाजूबंद), पादप्रलंब (पैर तक लटकने वाला हार और मुरवि (आभरण विशेष) नामक आभूषण धारण किये जाते थे। नुपूर में खला, (करधनी, हार), कडग (कड़ा), खुद्दय (अंगूठी), वलय रत्न और दीनार माला स्त्रियों के आभूषण माने जाते थे। लोग मस्तक पर सुवर्ण पट्ट लगाते थे और अंगुली में नाम मुद्रिका पहनते थे। हाथी और घोड़ों को भी आभूषणों से सज्जित किया जाता था। हाथियों के गले में सुवर्ण और मणि से जड़ित हार पहनाये जाते थे तथा गायों को मयूराग चूलिका पहनाई जाती थी। राजा महाराजा और धनिक वर्ग के लोग सोने के बर्तनों में भोजन करते थे। उनमें थाल, परात (थालग) आदि मुख्य थे। बैठने के पीठे (पावोद), आसनक और पल्यंक (पलंग) आदि स्वर्ण से जड़े हए होते थे। सोने के भंगार (झारी) का उपयोग होता था। मध्यम स्थिति के लोग चांदी का उपयोग करते थे। ___कीमती रत्नों और मणियों में कर्केतन, वज्र, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मस्सारग्ल, हंसगर्भ पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन पुलक, रजत, जातरूप, अंकस्फटिक, दिष्ठ, (२०६)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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