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१३. अंगचूलिका
१५. चन्द्रवेध्यक १४. वग्गचूलिका १५. विवाहचूलिका १६. अरुणोपपात १७. वरुणोपपात १८. गरुडोपपात १९. धरणोपपात
इस प्रकार नन्दीसूत्र में १२ अंग, ६ आवश्यक, ३१ कालिक एवं २९ उत्कालिक सहितक ७८ आगमों का उल्लेख मिलता है । ज्ञात्वय है कि आज इनमें से अनेक ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। . यापनीय और दिगम्बर परम्परा में आगमों का वर्गीकरण
__यापनीय और दिगम्बर परम्पराओं में जैन आगम साहित्य के वर्गीकरण की जो भी शैली मान्यरही है, वह भी बहुत कुछ नन्दीसूत्र की शैली के अनुरूप है । उन्होंने उसे उमास्वाति के तत्वार्थसूत्र से ग्रहण किया है। उसमें आगमों को अंग और अंगबाह्य ऐसे दो वर्गों में विभाजित किया गया है। इसमें अंगों की बारह संख्या का स्पष्ट उल्लेख तो मिलता है, किन्तु अंगबाह्य की संख्या का स्पष्ट निर्देश नहीं है । मात्र यह कहा गया है अंगबाह्य अनेक प्रकार के हैं। किन्तु अपने तत्वार्थभाष्य (१/२०) में आचार्य उमास्वाति ने अंग-बाह्य के अंतर्गत सर्वप्रथम सामायिक आदि छह आवश्यकों का उल्लेख किया है उसके बाद दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, दशा, कल्प-व्यवहार निशीथ और ऋणिभाषित के नाम देकर अन्त में आदि शब्द से अन्य ग्रंथों का ग्रहण किया है । किन्तु अंगबाह्य में स्पष्ट नाम तो उन्होंने केवल बारह ही दिये हैं। इसमें कल्प-व्यवहार का एकीकरण किया गया है। एक अन्य सूचना से यह भी ज्ञात होता है कि तत्वार्थभाष्य में उपांग संज्ञा का निर्देश है । हो सकता है कि पहले १२ अंगों के समान यही १२ उपांग माने जाते हों । तत्वार्थसूत्र के टीकाकार पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्दी आदि दिगम्बर आचार्यों ने अंगबाह्य में न केवल उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि ग्रन्थों का उल्लेख किया है, अपितु कालिक एखं उत्कालिक ऐसे वर्गों का भी नाम निर्देश (१/२०) किया है । हरिवंशपुराण एवं धवलाटीका में आगमों का जो वर्गीकरण उपलब्ध होता है उसमें १२ अंगों एवं १४ अंगबाह्यों का उल्लेख है। उसमें भी अंगबाह्यों में सर्वप्रथम छह आवश्यकों का उल्लेख है- तत्पश्चात् दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प-व्यवहार, कप्पाकप्पीय, महाकप्पीय, पुण्डरीक, महापुण्डरीक व निशीथ का उल्लेख है । इस प्रकार धवला में १२ अंग और १४ अंगबाह्यो की गणना की गयी। इसमें भी कल्प और व्यवहार को एक ही ग्रन्थ माना गया है। ज्ञातव्य है कि तत्वार्थभाष्य की अपेक्षा इसमें कप्पाकप्पीय (कल्पिकाकल्पिक) महाकप्पीय (महाकल्प) पण्डरीक
और महापुण्डरीक-ये चार नाम अधिक हैं। किन्तु भाष्य में उल्लिखित दशा और ऋषिभाषित को छोड़ दिया गया है। इसमें जो चार नाम अधिक हैं-उनमें कप्पाकप्पीय और महाकप्पीय का उल्लेख नन्दीसूत्र में भी है, मात्र पुण्डरीक और महापुण्डरीक ये दो नाम विशेष हैं। .
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