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________________ * व्याख्या ग्रंथों का परिचय इस प्रकार व्याख्या प्रकारों एवं कतिपय प्रमुख व्याख्याकार आचार्यों की संक्षेप में जानकारी देने के अनन्तर अब आगमिक व्याख्या ग्रंथों का परिचय प्रस्तुत करते आचारांग- सबसे पहला आगम आचारांग है । इसकी आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय), जिनदास गणि महत्तर, आचार्य शीलांक और मनि धर्मसिंह ने क्रमशःनिर्यक्ति, चूर्णि, संस्कृत टीका और लोकभाषा टीका (बालावबोध टब्बा) लिखी है। । ___आचारांग नियुक्ति आचारांग के दोनों श्रुतस्कंधों पर लिखी गई है। नियुक्ति विधा के अनुसार इसमें प्रत्येक विशिष्ट एवं पारिभाषिक शब्द का निक्षेप पद्धति से विचार किया गया है । इसमें तीन सौ सैंतालीस गाथाएँ हैं। प्रथम श्रुतस्कंधं के प्रारंभ में मंगल गाथा है । उसमें सब सिद्धों को नमस्कार करके आचारांग की नियुक्ति करने की प्रतिज्ञा की गई है। इसके बाद आचार, श्रुत, अंग, ब्रह्म, चरण, शस्त्र, परिज्ञा, संज्ञा, चद, धूत, विमोक्ष, उपधान, अग्र आदि शब्दों का व्याख्यान किया गया है। सामान्य शब्दों की नियुक्ति करने के बाद नियुक्तिकार ने सूत्रस्पर्शी नियुक्ति प्रारंभ की है । उसमें सूत्रगत प्रत्येक शब्द का निक्षेप पद्धति से विचार किया गया है कि कौन-सा शब्द कितने प्रकार का है और किस शब्द में कितने निक्षेप संभव है । आचारांग को प्रथम अंग मानने के कारण को बताते हुए कहा है कि आचारांग द्वादशांगों में प्रथम हैं, क्योंकि इसमें मोक्ष के उपाय का प्रतिपादन किया गया है। वह सम्पूर्ण प्रवचन का सार है तथा आचारांग के अध्ययन से श्रमण धर्म का परिज्ञान होता है, इसलिए इसका प्रधान अर्थात् आधगणि स्थान है । जिन शब्दों या पदों के अवान्तर भेद हो सकते हैं, उन भेदों की संख्या व नाम भी बताए हैं तथा प्रत्येक अध्ययन के अंत में उसका सारांश एवं आशय भी स्पष्ट किया गया है। .. आचारांग नियुक्ति के आधार से जिनदास गणि महत्तर ने आचारंग चूर्णि लिखी है। नियुक्ति की गाथाओं के आधार [विशेष जानकारी के लिए वा:मो. शाह लिखित 'ऐतिहासिक नोंध' पढ़िए पर ही चूर्णि लिखी गई है, अतः ऐसा होना स्वाभाविक भी है। चूर्णिकार ने भी नियुक्तिवत् निक्षेप पद्धति का आधार लिया है। इसकी भाषा मुख्यतया प्राकृत प्रधान है, लेकिन विवेचन की स्पष्टता के लिए यत्र तत्र संस्कृत श्लोक भी उद्धृत किए हैं। प्रथम श्रुतस्कंध की चूर्णि में मुख्य रूप से अनुयोग, अंग, आचार, ब्रह्म, वर्ण, आचरण, शस्त्र परिज्ञा, संज्ञा, दिक्, सम्यक्त्व, योनि, कर्म, पृथ्वी आदि षटकाय, (१३५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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