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________________ और इस्लाम में कुरान का, जो स्थान है, वहीं स्थान जैनधर्म में आगम साहित्य का है । फिर भी आगम साहित्य को न तो वेद के समान अपौरुषेय माना गया है और न बाइबिल या कुरान के समान किसी पैगम्बर के माध्यम से दिया गया ईश्वर का सन्देश हो, अपितु वह उन अर्हतों व ऋषियों की वाणी का संकलन है, जिन्होंने अपनी तपस्या और साधना द्वारा सत्य का प्रकाश प्राप्त किया था। जैनों के लिए आगम जिनवाणी है, आप्तवचन है, उनके धर्म-दर्शन और साधना का आधार है । यद्यपि वर्तमान में जैनधर्म का दिगम्बर सम्प्रदाय उपलब्ध अर्धमागधी आगमों को प्रमाणभूत नहीं मानता है, क्योंकि उसकी दृष्टि में इन आगमों में कुछ ऐसा प्रक्षिप्त अंश है, जो उनकी मान्यताओं के विपरीत है । मेरी दृष्टि में चाहे वर्तमान में उपलब्ध अर्धमागधी आगमों में कुछ प्रक्षिप्त अंश हों या उनमें कुछ परिवर्तन-परिवर्धन भी हुआ हो, फिर भी वे जैनधर्म के प्रामाणिक दस्तावेज हैं, उनमें अनेक ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध हैं । उनकी पूर्णतः अस्वीकृति का अर्थ अपनी प्रामाणिकता को ही नकारना है। श्वेताम्बर मान्य इन अर्धमागधी आगमों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये ई.पू. पाँचवीं शती से लेकर ईसा की पाँचवीं शती अर्थात् लगभग एक हजार वर्ष में जैन संघ के चढ़ाव-उतार की एक प्रामाणिक कहानी कह देते हैं। . अर्धमागधी आगमों का वर्गीकरण । वर्तमान जो आगम ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन्हें निम्न रूप में वर्गीकृत किया जाता है.११ अंग १. आयार(आचारांग) २. सूयगड (सूत्रकृतांग), ३. ठाण (स्थानांग) ४. समवाय (समवायांग) ५. वियाहपन्नत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति या भगवती), ६. नायधम्मकहाओ (ज्ञात-धर्मकथाः, ७. उवासगदसाओ (उपासकदशा), ८. अंतगडदसाओ (अन्तकृद्दशा), ९. अनुत्तरोववाइयदसाओ (अनुत्तरौपपातिकदशाः) १०. पाहावागरणाई (प्रश्नव्याकरणानि) ११. विवागसुयं (विपाकश्रुतम्) १२. दृष्टिवाद, जो विच्छिन्न हुआ है। . १२ उपांग १. उववाइयं (औपपातिक), २. रायपसेंणइजं (राजप्रसेनजित्कं) अथवा रायपसेणियं (राजप्रश्नीय), ३. जीवाजीवाभिगम, ४. पण्णवणा (प्रज्ञापना) ५. सूरपण्णति ( सूर्यप्रज्ञप्ति), ६. जम्बुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) ७. चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति),८-१२. निरयावलियासुयक्खंध (निरयावलिकाश्रुतस्कन्ध), ८. निरयावलियाओ (निरयावलिकाः) ९. कप्पवडिंसियाओ (कल्पावतंसिकाः) १०. पुफियाओ (पुष्पिकाः), ११. पुप्फचूलाओ (पुष्पचूलाः) १२. वण्हिदसाओ (वृष्णिदशा)। जहाँ तक उपर्युक्त अंग और उपांग ग्रन्थों का प्रश्न है । श्वेताम्बर परम्परा के सभी सम्प्रदाय इन्हें मान्य करते हैं । जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय इन्हीं ग्यारह अंग सूत्रों को स्वीकार करते हुए भी यह मानता है कि ये अंगसूत्र वर्तमान में विलुप्त हो गये हैं। उपांगसूत्रों के सन्दर्भ में श्वेताम्बर परम्परा के
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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