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________________ विहार करते हुए आये। अपने शिष्य जंबू के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने निरयावलिका आदि उपांगों का प्रतिपादन किया है। निरयावलिका के दस अध्ययनों में राजा श्रेणिक के काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, प्रियसेनकृष्ण और महासेनकृष्ण इन दस पुत्रों की कथाएँ हैं । ये सभी अपने बड़े भाई कोणिक (चेलना का पुत्र) व चेडा महाराज के बीच हुए युद्ध में स्वर्गवासी हुए थे । इन कुमारों की मृत्यु के समाचार सुनकर उनकी माताओं ने वैराग्यभाव उत्पन्न होने से भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण कर आत्म कल्याण किया। कोणिक और चेडा महाराज के बीच युद्ध होने का कारण कोणिक के छोटे भाई विहल्लकुमार (चेलना के द्वितीय पुत्र) का अपने पिता श्रेणिक से प्राप्त सेचनक नामक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों के हार को लेकर अपने नाना चेडा महाराज के पास पहुँच जाना और वापिस लौटाने का सन्देश भेजने पर भी चेडा महाराज का उसे वापिस नहीं भेजना था। उन्होंने अपने दूत से सन्देश भिजवाया कि शरणांगत की रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म है । इस पर क्रुद्ध होकर कोणिक ने चेडा महाराज पर चढ़ाई कर दी। चेडा महाराज ने अठारह देशों के राजाओं के साथ युद्ध में सामना किया । इन दोनों के बीच रथ मूसल और शिलाकंटक जैसे भयानक संग्राम हुए, जिनमें एक करोड़ अस्सी लाख लोग मारे गए थे। इसी में राजा कोणिक की जीवनी का विस्तार से वर्णन किया गय है । कोणिक का चेलना के गर्भ में आना, चेलना का वीभत्स, घृणित दोहद, दोहद की पूर्ति, कोणिक का जन्म, राज्य प्राप्ति के लिए कोणिक का अपने पिता को कारागार में डालना, श्रेणिक की मृत्यु आदि का वर्णन है। कल्पावतंसिका में श्रेणिक राजा के पुत्र कालकुमार के पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र पद्मभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनी गुल्म, आनन्द और नंद इन दस पुत्रों की कथाएँ हैं। सब ने भगवान महावीर के पास दीक्षा ली थी। श्रमण पर्याय का पालन करके ये सब देवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और वहाँ से मुक्ति प्राप्त करेंगे। ___ पुष्पिका के दस अध्ययनों में चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका देवी, पूर्ण भद्र, मणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृष्टि की कथाएँ हैं। ये सब ज्योतिषी देव हैं। भगवान महावीर के समवसरण में आकर इन्होंने विविध प्रकार के नाटक करके दिखाये । उनकी ऐसी उत्कृष्ट ऋद्धि को देखकर गौतम गणधर ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि इनको यह ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई । तब भगावन ने इनके पूर्व भव बतलाये (९०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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