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________________ उपयोगिता स्वीकार नहीं करते । विनय को मानने वाले विनयवादी हैं। उन्हें किसी भी मत की निंदा पसंद नहीं है । ये लोग गाय से लेकर गधे तक, चांडाल से लेकर ब्राह्मण तक सभी छोटे-बड़े प्राणियों को नमस्कार करते हैं। इन वादियों के क्रमशः १८०,८४,६७ और बत्तीस भेद होते हैं। सूत्र में मल चार वादों का ही उल्लेख करके उनका निरासन किया है । इस अध्ययन में बाईस गाथाएँ हैं। तेरहवें अध्ययन का नाम याथा तथ्य है । अध्ययन की प्रथम गाथा में आमत 'तथ्य' शब्द के आधार से इस अध्ययन का 'याथातथ्य' नामकरण किया गया है। इसमें साधु के गुण-दोषों की वास्तविक स्थिति व कर्तव्यों पर प्रकाश डाला है। इसमें तेईस गाथाएँ हैं। "चौदहवें अध्ययन का नाम ग्रन्थ है। ग्रन्थ का सामान्य अर्थ है-परिग्रह । परिग्रह के बाह्य और अभ्यन्तर ये दो भेद हैं । दास-दासी आदि दृश्यमान वस्तुएँ बाह्य परिग्रह हैं एवं क्रोध, मान, माया आदि वैकारिक भाव अभ्यन्तर परिग्रह हैं। इसमें निग्रंथों के स्वरूप का वर्णन किया गया है । इस अध्ययन में सत्ताईस गाथाएँ हैं एवं नामकरण का आधार प्रारंभिक गाथा में आगत 'ग्रंथ' शब्द है। पंद्रहवें अध्ययन का नाम आदानीय' है। इस अध्ययन में विवेक की दर्लभता, संयम के सुपरिणाम, वीतराग पुरुष का स्वभाव, संयमी मनुष्य की जीवन पद्धति आदि उपसंहारात्मक विविध विषयों का निरूपण है । इसमें पच्चीस गाथाएँ हैं। ___'गाथा' यह सोलहवें अध्ययन का नाम है । यह प्रथम श्रुतस्कंध का अंतिम ... अध्ययन हैं । इसमें ब्राह्मण श्रमण, भिक्षु व निग्रंथ का व्याख्यात्मक विश्लेषण करते हुए सुसाधु के गुणों का वर्णन किया गया है। ब्राह्मण आदि की व्याख्या इस प्रकार की गई है-जो समस्त पाप, कर्म से विरत है, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परनिंदा, अरति, रति, माया और मिथ्यात्वशल्य से रहित अक्रोधी तथा निरभिमानी है एवं समिति ज्ञानादि गुण सहित है, वह ब्राह्मण है । जो अनासक्त है, निदान रहित है, कषाय मुक्त है और हिंसादि पाँच पापों से रहित है, वह श्रमण है । जो अभिमानरहित है, विनय सम्पन्न है, उपसर्ग और परीसहों पर विजय प्राप्त करने वाला है एवं आध्यात्मिक वृत्ति वाला व परदत्त भोजी है, वह भिक्षु है । जो ग्रंथ-परिग्रहादि रहित एकाकी है, अप्रमत है और पूजा सत्कार का आकांक्षी नहीं है, वह निर्गंथ है। दूसरे श्रुत स्कंध के सात अध्ययन है। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार है-पुण्डरीक, क्रिया स्थान, आहार विचार, प्रत्याख्यान क्रिया, आचार श्रुत या अनगार श्रुत, आर्द्रकीय, नालंदीय। इनमें से आचारश्रुत और आर्द्रकीय ये दो अध्ययन पद्यात्मक हैं और शेष पाँच गद्यात्मक हैं। इन सातों अध्ययनों को महाअध्ययन कहा (५५)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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