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________________ प्रकाशकीय राष्ट्रसंत, जैन धर्म प्रभावक, कुशल प्रवचनकार, सिद्धहस्त लेखक, सरस कवि, प्रशान्त मूर्ति, सरल स्वभावी पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरिजी म. सा. को यदि वाणी का जादूगर कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी प्रवचन कला अद्भुत है। श्रोताओं को घंटों बाँधे रखने की कला में वे प्रवीण हैं। इसी प्रकार वे लेखन कला में भी दक्ष हैं। उन्होंने जैन आगम ग्रंथों तथा अनेक साहित्यिक ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन किया है। यही कारण है कि उनके प्रवचन जितने सारगर्भित होते हैं। उतने ही हृदयस्पर्शी भी । पूज्य आचार्य भगवंत अपने ज्ञान को मुक्तहस्त से वितरित करते हैं । जो बात प्रवचन में न कह सके उसे पुस्तक रूप में प्रस्तुत कर देते हैं । जैन आगम साहित्य का पहले भी आपश्री अनुशीलन कर चुके हैं, जिसके परिणामस्वरूप “भगवान महावीर ने क्या कहा है ?” नामक ग्रंथ पाठकों को उपलब्ध हुआ। उस ग्रंथ में आगम ग्रंथों की चुनी हुई गाथाओं की व्याख्या में आपश्री का चिंतन प्रकट हुआ है । अभी कुछ वर्षों पूर्व आचार्य भगवंत ने जैन आगम साहित्य पर कुछ लेखन करने का विचार बनाया था । हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि आपश्री का वह विचार मूर्तरूप में हमारे सामने प्रकट हो गया है। जैन आगम साहित्य पर वैसे तो अनेक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं किंतु आपश्री का प्रस्तुत ग्रंथ "जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन” उन सबसे भिन्न है। आचार्य भगवंत के इस ग्रंथ को जन-जन के लिए अर्पित करते हुए हमें अत्यधिक हर्ष हो रहा है। इस ग्रंथ का अध्ययन करके सामान्य जन तो लाभान्वित होंगे ही साथ ही शोध कार्य में संलग्न विद्वान एवं जिज्ञासु व्यक्ति भी इससे अवश्य ही लाभान्वित होंगे । . आचार्य भगवंत इसी प्रकार का लेखन करते रहें और हम उसे प्रकाशित कर जनता के लिए उपलब्ध कराते रहे, इसी आशा और विश्वास के साथ अक्षय तृतीया २०१५ दि. १३.५.१९९४ (vii) श्री राज-राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट अहमदाबाद/ बम्बई
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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