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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
सूत्र की समाप्ति के बाद सब बैठकर प्रतिक्रमण सूत्र पढ़ते हैं। "अब्भुट्टिनोमि आराहणाए" इत्यादि से लेकर "वंदामि जिणे चउवीस" यहाँ तक प्रतिक्रमण सूत्र पूरा कर 'करेमि भंते सामाइयं इच्छामि ठामि' इत्यादि सूत्र पढ़कर कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग में चन्देसु निम्मलयरा यहाँ तक चतुर्विंशतिस्तव बारह चिन्तबे, कायोत्सर्ग करके प्रगट लोगस्स कहे, मुहपत्ति प्रतिलेखना करे, मुहपत्ति प्रतिलेखनां कर दो वंदनक दे। समाप्ति अब्भुट्ठियो क्षमावे, चार पाक्षिक खमासमण दे। पहले पाक्षिक क्षामणे में 'तुब्भेहिं समं' दूसरे में अहमवि वंदावेमि चे इयाई' तीसरे में 'पायरियस्स संतियं' चौथे में 'नित्थारग पारगा होहत्ति" गुरु के कहने पर सब शिष्य कहेंइच्छामो अणुसटुिं ? गुरु कहे 'देवसि णिजिउ' 'इसीप्रकार चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में पक्खिय शब्द के स्थान में चातुर्मासिक का नाम लेना चाहिये और सांवत्सरिक में सांवत्सरिक नाम लेना, मूलगुण उत्तर गुण कायोत्सर्गों में चातुर्मासिक में २० और सांवत्सरिक में ४० चतुर्विंशतिस्तव और ऊपर एक नमस्कार चिन्तन किया जाता है । तथा श्रुतदेवता के कायोत्सर्ग के स्थान भवनदेवता का कायोत्सर्ग
और उसकी स्तुति बोलनी चाहिये। इस प्रकार पाक्षिक प्रतिक्रमण -विधि समाप्त हुई।
प्रतिक्रमण विधि की २ संग्रहगाथाएं नीचे दी जाती हैं-- "मुहपत्ती वंदणय, संबुद्धाखामणं तहा लोए। वंदण-पत्तेय-खामणाणि वंदणं सुत्त ॥१॥ सुत्तं अब्भुट्ठाणं, उस्सग्गो पुत्ति वंदणं चेव । सम्मत्त खामणाणि य चउरो तह थोभ वंदगया ॥२॥