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________________ प्रतिक्रमण विधि संग्रह अवज्ञा, पाशातना की हो तो कृपाकर क्षमा करना मैं अपना मिथ्या दुष्कृत करता हूँ।" श्रावक क्षमाश्रमण देकर के “अब्भुट्ठियोऽहं पत्तेयखामणेणं अभितर पक्खियं खामेउ", बोले तब साधु कहे "अहमवि खामेमि तुब्भे" उसके बाद श्रावक साधु के चरणों का स्पर्श करके सकल क्षामणक का सूत्र बोले, उसमें साधु परपत्तियं बोलते हैं, तब साधु. अविधि से सारणा, वारणा की चोइणा, प्रतिचोइणा की हो तदर्थ मन, वचन और काया से मिच्छामि दुक्कड करता है। ___ श्रावकों के परस्पर क्षामणे इस प्रकार होते हैं-बड़ा श्रावक प्रथम कहे-"इच्छाकारि अमुक श्रावक तुम्हें वांदता हूं।" छोटा श्रावक कहे-“मैं तुमको वांदता हूं, खमाता हूँ", उसके बाद दोनों कहे"खामेमि पक्खियं पन्नरसल दिवसाणं पन्नरसह राईणं जं किंचि अपत्तियं परपत्तियं, अविधि से सारिया, वारिया, भणिया, भाषिया .मिच्छामि दुक्कड ।" . . छोटा श्रावक इस प्रकार बोलता हुश्रा बड़े श्रावक के जानुओं में हाथ दे, फिर वन्दन कर क्षमापन कर दोनों आगे प्रतिक्रमण करे, इस प्रकार सर्व को क्षमाकर उत्संघट्टित मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर वंदनक देकर "देवसियं आलोइयं पडिक्कंता इच्छाकारेण भगवन् पक्खियं पडिक्कमावेह" ऐसा गुरु के कथन के बाद दूसरे भी इसी प्रकार कहें, तब गुरु कहे-अमुक पाक्षिक सूत्र पढ़ सकोगे ? वह वंदन करके बोले,--"आपके प्रसाद से", फिर गुरु कहे "इच्छाकारि सूत्र पढो।" वह साधु वंदन करके कहे-- "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पाक्षिक सूत्र पढू इच्छं, कहकर तीन नमस्कार मंत्र का उच्चारण कर खड़ा खड़ा पाक्षिक सूत्र बोले
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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