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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
प्रतिक्रमण विधि
[आवश्यक चूणि के आधार से] देवसिक-- . स्थंडिलादिभूमियां ऐसे समय में प्रतिलेखी जावे कि जिसके अन्त में सूर्यास्त हो और उसके बाद तुरन्त ही प्रतिक्रमण किया जाय उसकी विधि इस प्रकार है
· प्रतिक्रमण दो प्रकार से होता है, व्याघातिम और व्याघात रहित । जो व्याघात बिना का प्रतिक्रमण होता है उसमें गुरु के साथ सभी साधु प्रतिक्रमण करते हैं, यदि गुरु श्रावकों को धर्मोपदेश करने आदि में रुके हुए हों तो साधुओं के साथ आवश्यक करने में व्याघात खड़ा होता है। जिस समय प्रतिक्रमण करना है वह समय धर्मोपदेशात्मक व्याघात से बीत जाता है, अतः ऐसे प्रसंग व्याघात कहलाते हैं। ऐसे प्रसंगों में गुरु और उनका निषद्याधर दोनों पीछे से चारित्राचार के अतिचारों के चिन्तनार्थ कायोत्सर्ग करते हैं, दूसरे साधु गुरु को पूछ कर गुरु के स्थान के पीछे यथा रत्नाधिक नजदीक
और दूर बैठ जाते हैं क्योंकि यही उनका स्वस्थान गिना जाता है । वहां बैठकर प्रतिक्रमण करने वालों की मंडली की स्थापना निम्न प्रकार से होती है।