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[१०६ प्रतिक्रमण विधि संग्रह हमारी सामाचारी में प्रत्येक क्षामणा के बाद मुहपत्ती पडिलेही नहीं जाती । यदि कभी मार्जारी छिन्दन कर दे तो।
"जासा करडी कब्बरी, अंखिहिं कक्कडि यारि । मंडलि मांहि संचरीय, हय-पडिहय मज्जारि ६।" . .. उपर्युक्त गाथा का चौथा पद 'तीन बार' पढ़कर क्षुद्रोपद्रव अपद्रावणार्थ कायोत्सर्ग करना और शांतिनाथ के नमस्कार की उद्घोषणा करना। कारण विशेष से जुदा प्रतिक्रमण अथवा पालोचना करने वाले साधु प्रतिक्रमण के बाद तुरंत गुरुवंदन करके पालोचना क्षामणक प्रत्याख्यान कर लें। प्रतिक्रमण पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख होकर करना चाहिये। ___प्रतिक्रामक श्रमणों की मंडली श्रीवच्छाकार होनी चाहिए। श्रीवच्छ मण्डली का आकार निम्नलिखित गाथा में बताया है।
. "मायरिया इह पुरओ, दो पच्छा तिन्नि तयण दो तत्तो। - तेहिं पि पुणो इक्को, नवगणमाणा इमा रयणा ॥१॥ . अर्थ--मंडली में "आचार्य सबके आगे, प्राचार्य के पीछे दो . साधु, दो के पीछे तीन, तीन के पोछे फिर दो और दो के पीछे एक"
इस प्रकार की प्रतिक्रमण मण्डली साधुओं के समुदाय की होती है। • स्थापना इस प्रकार है