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________________ प्रतिक्रमण विधि संग्रह तप २४ मित्ति २५ गोरव २६ करेणेहिं २७ पलिय चियं २८ भयं २६ नि च । आलिद्धमणालिद्ध ३०, चूलिय ३१ चुडलित्ति ३२ बत्तीसं ||१२|| बारसावत्तं । दुपवेस - महाजायं, दुयं प इग निक्खमं तिगुत्तं चउसिर नमरणं ति पणवोसा ॥१३॥ अह सम्मभवणयंगो, करजुय विहि धरिय पुत्तिरय हरणो । परिचिंतिएंऽइयारे, जहक्कुमं गुरु पुरो वियडे ॥१४॥ ग्रह उवविसित्त सुत्तं, सामाइयमाइयं पढिय पयो । प्रभुट्टिओमि इच्चाइ पढइ दुहउट्ठियो विहिणा ।।१५।। दाऊणं वन्दणं तो पणगाइसु जइसु खामए तिन्नि । किइकम्मं करिय प्राथरियमाइ ठिप्रोसढ्ढो गाहातिगं पढइ || १६ || इह सामाइय- उस्सग्ग-सुत्त मुच्चरिय काउसरग ठिओ । चिन्तइ उज्जोयदुगं चरितअइयारसुद्धिकए || १७|| विहिणा पारिय सम्मत्त सुद्धिहेउ च। पढइ उज्जोत्रं । तह सब्वलोयअरहंत - चेइयाराहरणुस्वग्गं ॥१८ || चितिय पारेइ सुद्धसम्मत्तो । काउ उज्जोयगरं, पुक्रवरदी वढ्ढ कड्ढइ सुइसोहनिमित्त ॥ १६ ॥ पुण पणवीसुस्सास, उस्सग्ग करेइ पारए तो सकुसल किरिया - फललग सिद्धाण पढइ विहिणा । थयं ||२०|| [ex उस्सग्गं । 1 अह सुअस मिद्धिहेउ सुअदवी ग्रे करेइ चितेइ नमुक्कारं, सुई व देई व तीई थुई ||२१||
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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