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खराब रंग का वर्ण लगे तो उस वस्तु की शोभा विकृत होती है, वैसे समकित (प्रारंभ में निर्मल होने पर भी ) कषायादि प्रमाद लगने पर मलिन होता है (वह प्रमादी अत्यन्त अविचारी कार्यकारी है क्योंकि समकित अवश्य वैमानिक आयु बंधक होने से अल्प प्रमाद से अधिक गुमा देता है वह इस प्रकार - )।।२७३ ।।
नरएस सुरवरेसु अ, जो बंधड़ सागरोवमं इक्कं । पलिओयमाण बंधइ, कोडिसहस्साणि दिवसेणं ॥ २७४ ॥
(जो सो वर्ष के आयुष्य में ) प्रमाद से नारकी का एक सागरोपम जितना, अप्रमाद से उतना देवगति का बंध करता है वह एक दिन के अप्रमाद से हजारो-क्रोड पल्योपम देवलोक का और एक दिन के प्रमाद से उतना नरक का बंध करे। (सो वर्ष के दिन से १० कोटाकोटि पल्योपम को भाग देने पर हजारो- क्रोड आता है। अतः प्रमाद से व्यक्ति कितना गवांता है इस पर सोचें) ।।२७४।।
पलि ओवमसंखिज्जं भागं जो बंधई सुरगणेसु ।
दिवसे दिवसे बंधड़, स वासकोडी असंखिज्जा ॥ २७५ ॥ इस प्रकार सो वर्ष के अप्रमाद से पल्योपम के संख्यातवें भाग जितना देवगति का बंध करता हो वह प्रतिदिन असंख्यात क्रोड़ वर्ष जितना ... बंध करता है (सो वर्ष के दिन से पल्योपम के संख्यातवें भाग को भाग देने पर उपरोक्त वर्ष आते हैं । ) ।। २७५ ।।
एस कमो नरएस वि, बुहेण नाऊण नाम एयंपि । धम्मंमि कह पमाओ, निमेसमित्तंपि कायच्यो ॥ २७६ ॥ यही क्रम नरक के बंध के लिए हैं। इस गणित को समझकर बुद्धिमान पुरुष दुर्गति निवारक धर्म में (निमेष) क्षण मात्र भी प्रमाद क्यों करे? २७६ ।।
दिव्यालंकारविभूसणाई, रयणुज्जलाणि य घराई । रूवं भोगसमुदओ, सुरलोगसमो कओ इहई ? ॥२७७॥ ( सिंहासन छत्रादि) दिव्य शणगार, दिव्य आभरण रत्नों से प्रकाशित देव विमान और अति-अद्भुत सौंदर्य और भोग समृद्धि इस मृत्यु लोक में कहाँ से लाना ? (जो यहाँ नहीं है तो ठिकरी के समान भोग सुख में मग्न होकर धर्म को क्यों गंवांना ? ) ।।२७७ ।।
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श्री उपदेशमाला