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प्रश्न : ५५५- "महाविदेह में पृथक्-पृथक् ग्च्छ, पंथ, समुदाय या संप्रदाय हो
शकते है ? महाविदेह में भी जितने गणधर उतने गच्छ (गण) होते हैं। अनेक गच्छ होते हैं। परंतु कथंचित् परस्पर आचार भेद की संभावना होते हुए भी परस्पर विरोधी नहीं होते।"
-जिनाज्ञा इस से यह सिद्ध होता है कि आचार भेद वालों को मिथ्यात्वी, बिचाराओ, ए शुं समझे
___ "ईन्हे श्वेताम्बर, दिगम्बर, नवम्बर, डीसंबर न कहकर मलिनांबर कहिए" ऐसे शब्दों का प्रयोग करने वालों ने स्पष्ट तया जिनाज्ञा उल्लंघन का
पाप अपने शिर पर लिया है। यह सिद्ध होता है। वि.सं. १९०७ के उल्लेख में नेमिसागरजी पूर्ण अवधूत थे, प्रतिक्रमण में पूरे तीन घंटे लगते थे। साबरमती नदी पार करने में एक घंटा लगता। शेठ हठीसींग की ध.प. रुक्मिणिबाई ने अहमदाबाद पांजरापोल का उपाश्रय उनके वास्ते बनवाया था। किन्तु वे वहां न ठहरते हुए सुरजमल के डहेले के मकान में ठहरते थे। जो वर्तमान में आंबली पोल उपाश्रय के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने ही श्री पूज्य यतियों की आज्ञा लेना या उनको वंदन करने की परंपरा को तोड दिया था। जिससे दो पक्ष पड गये