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________________ गमें टोलें परवरी) फिर भी मान नहीं करती, क्योंकि वह जानती है कि यह प्रभाव ज्ञान-दर्शन चारित्रादि गुणों का है, मेरा नहीं। इस प्रकार अन्य साध्वीयों को भी गर्व नहीं करना चाहिए ।।१३।। . दिणदिक्खियस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्जचंदणा अज्जा। नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सय्यअज्जाणं ॥१४॥ एक दिन के दीक्षित द्रमक साधु के सामने ३६ हजार साध्वीयों की स्वामिनी चंदना आसन पर बैठना भी अविनय समझती है अतः ऐसा विनय सभी साध्वीयों को करना चाहिए ।।१४।। वरिससयदिक्खियाए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू । अभिगमणवंदणनमंसणेण विणएण सो पुज्जो ॥१५॥ सो वर्ष की दीक्षित साध्वी को आज का दीक्षित साधुके सामने जाकर वंदन-नमस्कारकर आसन प्रदानकर विनय पूर्वक पूजने योग्य है ।।१५।। धम्मो पुरिसंप्पभयो, पुरिसवरदेसिओ पुरिसजिट्ठो । लोए वि पहू पुरिसो, किं पुण? लोगुतमे धम्मे ॥१६॥ दुर्गति में गिरते आत्मा को बचाने वाला जो धर्म वह पुरुषों से उत्पन्न है पुरुष गणधर और. पुरुषवर तीर्थंकर प्रभु से उपदेशित ऐसा श्रुत-चारित्र रूपी धर्म पुरुषों से प्ररूपित होने से पुरुष ज्येष्ठ है। लोगों में भी पुरुषों का ही प्रभुत्व है मालिक पुरुष ही होता है तो फिर लोकोत्तर धर्म में पुरुष की प्रधानता का तो कहना ही क्या? ।।१६।। पति के परलोक जाने पर भी उसके पुत्र पिता का नाम ही लिखतें हैं माता का नहीं। इससे भी पुरुष प्रधानता ही सिद्ध होती है। - संवाहणस्स रन्नो, तइया वाणारसीएनयरीए । ... कन्नासहस्समहियं, आसी किर रूववंतीणं ॥१५॥ तहयि य सा रायसीरी, उल्लटुंती न ताइया ताहिं । उयरट्ठिएण एक्केण, ताइया अंगवीरेण ॥१८॥ . पूर्वकाल में 'वाराणसी' के राजा संवाहन राजा को रूपवंती एक हजार कन्याएँ थी ऐसा सुना जाता है। [राजा की आकस्मिक मृत्यु होने पर वारस के अभाव में दूसरे राजा राज्य पर कब्जा करने आये उस समय राज्य लक्ष्मी को लूँटती हुई वे कन्याएँ रक्षा न कर सकी परंतु पट्टराणी के उदर में गर्भस्थ पुत्र अंगवीर्य ने राज्य लक्ष्मी का संरक्षण किया ।।१७-१८।। ___ इससे पुरुष ही प्रधान है। यह सिद्ध होता है। श्री उपदेशमाला
SR No.002244
Book TitleUpdesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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