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'प्रभूवीर एवं उपसर्ग
उपस्थित भगवान के पास पहुंचता है। प्रभु को देखते ही देव को गहरा कोप उत्पन्न होता है।
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जिन परमात्मा के दर्शन से दोष क्षय हो जाते है, उन परमात्मा को देखकर इनका द्वेष-दावानल धधक उठता है । हम सभी जानते ही हैं कि एक रात में संगम देव जो बीस उपसर्ग करता है। इसमें से एक भी उपसर्ग से तो दूसरों का प्राण भी जा सकता है, परन्तु प्रभु लेशमात्र भी ध्यान से चलायमान नहीं होते हैं। ये बीस उपसर्ग भक्तों के दिल को कंपायमान कर दें ऐसा है । सुननेवाले अजनबी लोग को भी विचार में रख दें ऐसे है । परमात्मा की धीरता के समक्ष तीन लोक भी वामन के समान है, वे संशयरहित है। लेकिन रांक संगमदेव अभव्य होने से गम्भीर मिथ्यादृष्टिवाला है उसे कहां से समझ आये ? अब हमलोग बीस उपसर्गों की बात शुरु करते हैं । प्राणसंशय उत्पन्न कर देनेवाली यह कर्मकथा ऐसे तो हर वर्ष में कल्पसूत्र द्वारा श्रवण करते ही हैं, परन्तु उस वक्त समय की कमी के कारण विवेचन नही किया जा सकता है ।
काया की माया ने हमें इस प्रकार कमजोर बना दिया है कि मार्ग में चलते समय उड़ता हुआ तिनका भी हमें विह्वल कर देता है, एक नवकार के • काउसग्ग में भी चित्त झूले की तरह डोलायमान होने लगता है। एक मच्छर, चीटी या मक्खी के काटने पर भी हम बेचैन हो जाते हैं।
हमलोग जानते हैं कि संगमदेव प्रभु के लिये ऐसी कल्पना न करे कि 'इन्द्र के बल से वह तप-जप करता है, उनका गुणगान तो सचमुच में मिथ्या आडंबर ही था । ' इसीलिये इन्द्र ने उनकी उपेक्षा की। प्रभु को देखते ही उसे भयंकर आवेश आया । महापापी जीवों की हीनदशा कैसी होती है कि जिनके दर्शन या स्मरण से अच्छे-अच्छे को उपशम प्राप्त करावें, ऐसे परमतारक का दर्शन से इस अभव्य जीव को भयंकर क्रोधउत्पन्न होता है । वह एक-एक उपसर्ग करते जाता है, ध्यान में अडिग प्रभु को वह ज्यों-ज्यों देखते जाता है त्यों-त्यों पराजित जुआरी दोगुना खेलते जाता है' के न्याय से भयानक से भयानक उपसर्ग - श्रेणी का सर्जन किये जाता है। एक रात में उन बीस उपसगीं की बात अब प्रारंभ करते है ।
एक रात के उपसर्ग
१. प्रबल धूल की बरसात - जाने कि प्रलयकाल आया हो उस तरह
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