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________________ नीचगोत्र नाम कर्म का अंश बाकी होने से भवितव्यतावश जगदुद्धारकर परमात्मा को भी भिक्षाचर कहा जाय ऐसे ब्राह्मण कुल में ऋषभदत्त के यहाँ देवानंदा नामक महासती की कुक्षि में अवतार लेना पड़ता है। कर्म किसी को छोड़ता नहीं है। चौदह स्वप्नों का आना, अपने पति को बताना, यथामति से फलादेश करना,आश्चर्यचकित होना आदि घटनाएँबनी हैं। सिंहासन कम्पन से अवधिज्ञान का उपयोग करने के पर इन्द्र महाराजा ने हरणैगमेषीदेव के द्वारा गर्भापहार कराया।क्षत्रियकुंडग्राम नगर के अधिनायक महाराणी त्रिशलामाता के द्वारा देखे गये चौदह स्वप्न । ज्ञातकुल के सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा की पटरानी महादेवी त्रिशला की कुक्षि में प्रभु को स्थापित किया । बियासी दिनों का बाकी कर्म पूर्ण होते, श्रीत्रिशलादेवी की कुक्षि में प्रभु पधारे । देवानंदाने स्वप्न वापिस जाता है ऐसा देखा। यह बात जानकर ऋषभदत्त ब्राह्मण ने कहा कि आज मेरा आश्चर्य का कारण हल हुआ।अपने यहाँ ऐसा अमूल्य रत्न कहाँ से संभव है? त्रिशलादेवी ने स्वप्न देखा। इसकी जानकारी सिद्धार्थ महाराजा को दी। यथामति विचारकर फलकथन किया। प्रातःकाल में स्वप्न शास्त्रज्ञों से फलादेश जाना। ये सभी बातें तुम लोग हर वर्ष कल्पसूत्र में सुनते आये हैं। इन सबकी जीवनपद्धति कैसी अनुपम है? भोग भूतावल जैसे लगे व विषयों की विषमता समझ में आ प्रभूवीर एवं उपसर्ग 44
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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