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________________ ने खूब उपशांतभाव से यथोचित कहा। अन्ततः राजा अपने स्थान पर वापस आये । विश्वभूति अनगार ने साधुधर्म का अच्छा अभ्यास करके, गुरुसुश्रूषा में परायण रहकर प्रमादादि के विजेता बनकर सूत्रार्थ के ज्ञाता बनें, गुरु ने एकाकी विहार की आज्ञा देकर विहार कराया । तप-संयम में मग्न रहकर विचरण करने लगे, आतापना, तप और स्वाध्याय में मग्न रहकर प्रमादशत्रु को जीतने की भावना में आरूढ हुए और मासक्षमण के पारणे में मासक्षमण करने लगे । एक समय मथुरानगरी में आकर उद्यान में रहा करते थे । वहाँ उपस्थित अन्य महात्मा इनकी समतामय साधना से प्रसन्न होते रहे हैं। मासक्षमण के पारणा हेतु मध्याह्नकाल में स्वाध्यायादि करके गोचरी हेतु स्वयं जाते हैं । समिति का पालनपूर्वक छोटे-बड़े सबके घर भेदरहित होकर निर्दोषचर्या से जीनेवाले इस महात्मा को मार्ग में आती एक गायने लपेट लिये और तप से खिन्न शरीर होने के कारण गिर पड़े। उस समय समीप के महल में रहे तथा विवाह निमित्त वहाँ आये विशाखानंदी के लोगों ने इन्हें देखें एवं विशाखानंदी से यह बात की । हास्यमजाक के साथ उन्होंने 'महात्मा को कहा 'कहां गया : तुम्हारी मुट्ठी से कोठावृक्ष को गिरानेवाला बल ? समतापूर्वक विचरण करते महात्मा की समता उनके शब्दबाण से नष्ट हो गयी। रास्ता में जाते समय अनजान मनुष्य का आक्रोश सहन करना सरल है, लेकिन अपने गिने जाते व्यक्ति द्वारा कही गयी एक बात कभी भारी पड़ जाती है। समिति गुप्ति के साधक और महायतनावंत महात्मा को यह शब्दोने चक्कर में फँसा दिया, आवेशवश गाय की सींग पकड़कर घुमाते हुए आकाश में उछाल दिया । जीवमात्र के मित्र महात्मा इतने शब्दों से कैसे घायल हुए होंगे। इतने के बाद भी वे न रुककर 'मेरे तप-संयम में कोई फल हो तो मैं अतुल बलशाली बनूँ, 'ऐसा अनपेक्षित नियाणा कर दिया। आहार के लिये बाहर आने पर ही मेरा अपमान हुआ, बस, अब नहीं चाहिये आहार- पानी । ऐसा निर्णयपूर्वक आजीवन आहारपानी का त्याग किया। उद्यान में वापस आये, लेकिन वे कदम दर कदम बदलते गये । सभी महात्मा समझ गये, सभी ने इनके पाँव पड़कर विनती की आप ऐसा करेंगे तो समता कैसे टिकेगी ? लेकिन अब कोई भी बात कान में आती नहीं हैं। कषाय की गुलामी कैसी बूरी है ? प्रभु महावीर की आत्मा की भी कर्म ये दशा करें तो अपने जैसों की क्या कीमत होगी ? विषय कषाय से कितना सावधान रहना आवश्यक है उसे समझा जाता है ? सभी महात्मा हताश प्रभूवीर एवं उपसर्ग 32
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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