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________________ प्रवृत्ति देख उसकी योग्यता के अनुरूप उपदेश देने की इच्छा से कहते हैं कि 'महाभाग ! तुम हमें भटकेराह से सही रास्ते पर लाया यह द्रव्य मार्ग है,संसारमें तुम भूले-भटके हो 'संसारे भूला भमो रे भाव मार्ग अपवर्ग' मोक्षमार्ग सही मार्ग है। यह सुनकर नयसार महात्माओं से कहता हैं कि भगवन् ! आप अपने शिष्य के समान समझकर मेरे योग्य जो उचित है वह फरमाएजी।' ऐसे महापुरुष की लघुता अपने दिल को छु जाय ऐसी है। कर्म की लघुता होने के बाद आत्मा कितना नम्र-सरल और विवेक प्रधान बनता है वहमहावीरप्रभुकी आत्मा में हूबहू देखा जा सकता है । अद्यापि धर्म नहि पाये हुए नयसार की महानता का वर्णन करते हुए शास्त्रवचन पचाने योग्य है। . भो महायस ! कुमग्गपरिब्भमणपीडियाणं तण्हाछुहाभिभूयाणं अम्हाणं तहाविहपडिवत्तीए असणपाणदाणेण य परमोवयारी तंऽसि ता किंपि असुसासिउं समीहामो, गामचिंतएण भणियं-भयवं ! किमेवमासंकह ? नियसिस्सनिव्विसेसं सिक्खवेहित्ति।-महावीरचरियम्।। भावार्थ- 'अतिथि को भोजन दिये बिना भोजन नहीं करना।' ऐसां नियम रखनेवाले नयसार को सर्वसंगत्यागी साधुजन मिल गये, उन्हें आहारपानी का दान किया और फिर गन्तव्य मार्ग प्राप्त कराने की तैयारी करने लगे। तब उन महात्माओं में से धर्मदेशना लब्धिसंपन्न एक महात्मा नयसार की योग्यता देखकर कहते है। हे महायश! गलत राह पकड़ लेने से पीडित, भूख-प्यास से पराभूत हुए हम सबको आदरपूर्वक खान-पान का दान करके तुमने द्रव्योपकार किया है। अतः तुम्हें कुछ हितकर बातें कहना चाहते हैं। . तब नयसार कहता है कि भगवन् !आप कहने में इस प्रकार संकोच क्यों कर रहे हो? मुझे अपने शिष्य सदृश ही समझकर,जो कहने योग्य है उसे आप कृपा करके कहिये। जीव की पात्रता जब दिखाई देती है तो हमें भी ऐसे जिज्ञासु जीव को व्यक्तिगत भी कहने का मन हो जाता है। लायक जीव कुछ न कुछ पा लेता हैं ऐसा अनुभव में आता हैं। ये तो महावीरदेव का जीव था न? महात्मा ने उपदेश दिया, स्तवन में भी इस बात का कैसा उल्लेख मिलता है ? 'देव-गुरु ओळखावीआरे, विधिदीयो नवकार।' सम्यक्त्व-मिथ्यात्व का स्वरूप समझ में आते ही ये महाभागने मिथ्यात्व को छोड़ा और सम्यक्त्व का स्वीकार किया। 10 प्रभूवीर एवं उपसर्ग
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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