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उसके अन्दर पड़े हुए धन के राग के कारण उसने विचार किया, इस दुष्ट ने मेरे तीन-तीन बेटों को मार डाला, फिर भी इसे सन्तोष नहीं हुआ, और अब यह मेरी सारी सम्पत्ति को नष्ट कर देने पर तुला हुआ है। अतः मुझे अब इसका कोई ईलाज करना पड़ेगा।' __ ऐसा विचार कर जैसे ही वह उस दुष्ट को पकड़ना चाहा कि वह पिशाचरूपधारी देव अन्तर्धान हो गया और वह दुःखी होकर अफसोस प्रगट करने लगा।
फिर तो पत्नी की पृच्छा हुई :
'क्या हुआ ? स्वामी !' आगे के प्रसंग पूर्व में वर्णित प्रसंगों के समान लगभग समान ही हैं। उसके बाद पत्नी की प्रेरणा से धर्मध्यान में दृढ़ होकर प्रायश्चित शुद्धि पूर्वक साधना में लीन हो जाते है । और अन्त में साठ भक्त अर्थात् एक महीने का अनशन पूर्वक गृहस्थावस्था में ही समाधिपूर्वक देहत्याग करते है । प्रायः ऐसे साधकों की सद्गति निश्चित ही होती है । समकित की उपस्थिति में आयुष्य का बन्ध होता है, तो वैमानिक देवलोक का होता है, इस नियम से आयुष्य पूर्ण कर वह महानुभाव सौधर्मदेवलोक में श्रेष्ठअरुण विमान में उत्पन्न हुआ है। ... ____ तप.और त्याग का संस्कार लेकर दैवी वैभव के बीच जीनेवाले इतने सजग होते हैं कि वैभव उन्हें भय नहीं दे सकता।
निर्मल सम्यग्दर्शन के श्रेष्ठ प्रभाव के कारण अनासक्त रूप से जीवन पूर्ण कर वहमहानुभाव महाविदेहमें मोक्ष में जाएगा।
प्रभुवीर के दश श्रावक..
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