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________________ प्रभु का पदार्पण : व्रतों का स्वीकार नगरी के शंखवन उद्यान में जगदुद्धारक देवाधिदेव श्री महावीर प्रभु का पदार्पण हुआ। नगरजन और राजा सहित चुल्लशतक भी प्रभु के दर्शन और उपदेश श्रवण में शामिल हुए।आषाढी बादलों का गर्जन मयूर के मन में एक उमंग पैदा कर देता है। इसी प्रकार धर्मप्रेमियों का हृदय खुशी से नाच उठा। परन्तु चुल्लशतक का उल्लास अनोखा ही था । वाणी-वर्षा के मेघजल में अपनी आत्माको सींचकर उसने तृष्णा के तापको शान्त कर दिया था। वैराग्य-बीज अंकुरित ही नहीं, नवपल्लवित हो गये थे। सर्वत्याग का आदर्श उसके हृदय सिंहासन पर प्रतिष्ठित हो गया था। अपनी आसक्ति और अशक्ति को ध्यान में रखकर उसने जीवन की कायापलट करनेवाले सम्यक्त्व सहित पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत का स्वीकार किया, जो बड़े-बड़े भोगियों को भी जगा देनेवाला था । उसमें भी परिग्रह-परिमाण और भोगोपभोग की विरति में की गई विरति आषाढ़ के बादल से पूर्ण तृप्त मयूर के समान थी। .. धर्मपत्नी बहुला ने भी अपने स्वामी की प्रेरणा प्राप्त कर प्रभु के पास व्रत ग्रहण कर पत्नीधर्म को अलंकृत किया। सद्गृहस्थावस्था में रहते हुए भी प्राणसमान धर्मचर्या का उल्लासपूर्वक निर्वाह करते हुए चौदह वर्ष बीत गए । एक दिन मध्यरात्रि के समय धर्मचिन्तन करते हुए वैराग्य प्रबल हो उठा। विशेष साधना का निर्णय किया। प्रातःकाल स्वजनों की उपस्थिति में ज्येष्ठ पुत्र को घर की जिम्मेदारी सौंपकर, स्वयं निवृत्त होकर आत्महित साधक प्रवृत्तियों में मग्न हो गये। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना पूर्वश्रावकों की ही भांति आरम्भ किया । दैवीय उपसर्ग हुए। पर्ववत् तीन-तीन बेटों के सात-सात टुकड़े कर उसका रक्त-मांस आदि का छिड़काव किए जाने के बावजूद भी उसे विचलित होते न देखकर देव ने उसकी दुखती नस दबाकर कहा: _ 'तूने यदि अपनी जिद नहीं छोड़ी तो तेरी स्थावर-जंगम सारी सम्पत्ति को नष्ट कर दूंगा।सारी स्वर्णमुद्राएँ नगरी के राजमार्ग पर बिखेड़ डालूँगा।फिर तू दुर्ध्यान करते हुए अपने प्राण देगा।' इस प्रकार बार-बार कहे जाने पर चुल्लशतक क्षुब्धहो गया। ..प्रभुवीर के दश श्रावक ४७
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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