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________________ को पत्नी के प्रति राग, किसी को दीर्घ परिचित शरीर के प्रति प्रेम उसे झकझोड़ डालती है। उस समय तो वराग्य की हार और राग की जीत की रणभेरी बज उठती है। यहाँ चुल्लशतक के प्रबन्धमें सूत्रकार महर्षि ने ग्यारहवें प्राण के रूप में प्रसिद्ध धन के राग के खेल को शब्ददेह दिया है। धन को जो तुच्छ मानता है, वही धन को धन्य बना सकता है और धन के सदुपयोग से धन्य बन सकता है। राजा जितशत्रु आलंबिका नगरी में प्रजा के पिता के समान जितशत्रुराजा राज्य करता है। वैसे तो यहाँ अनेक श्रावकों के वर्णन में उसकी नगरी का नाम अलगअलग रूप से आया है, लेकिन राजा का नाम जितशत्रु ही आया। यह देखने से ऐसा लगता है कि जितशत्रु कोई विशेष नाम भी हो सकता है और विशेषण भी हो सकता है। यदि विशेष नाम हो तभी जितशत्रु राजा इस प्रकार कहा जा सकता है। और व्यक्तिगत नाम अलग-अलग हो, परन्तु पराक्रम और प्रभाव के प्रताप से शत्रु-समूह को जीतनेवाला हो, अर्थात् उसकी प्रसिद्धि ही जितशत्रु के रूप में हो गई हो, विशेषण ही नाम के रूप में प्रयोजित होता है। इतिहास की परिपाटी देखने पर विशेषण ही नाम के रूप में प्रयोग किया जाता हो, इसकी सम्भावना प्रतीत होती है। हमारे आगमादि धर्मशास्त्रों में अनेक नगर-देशों के राजाओं के लिए जितशत्रु राजा का उल्लेख किया गया है। जिनमें मुख्य रूप से ग्यारह हैं १. वाणिज्य नगरी २. चंपानगरी. . ३. वाराणसी ४. उज्जयिनी ५. सर्वतोभद्रनगर . ६. मिथिलानगरी ७. पांचालदेश ८. आमलकल्पानगरी ९. श्रावस्तीनगरी १०. आलंभिकानगरी ११. पोलासपुर विश्वासकेन्द्र यहाँ हम जितशत्रु राजा की आलंभिकानगरी की बात कर रहे हैं। देवनगरी की स्मृति करानेवाली इस नगरी में चुल्लशतक नामक सद्गृहस्थ निवास करता था । सद्गृहस्थ को सुशोभित करे, ऐसे औदार्य, दाक्षिण्य, परोपकार आदि गुणों से युक्त थे। .......... . .प्रभुवीर के दश श्रावक
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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