________________
चुल्लशतक श्रावक
राग आग : विराग बाग संसार में पग-पग पर राग-द्वेष के तूफान देखने को मिलते हैं।
संसाररसिक आत्माओं को राग.आकर्षित करती है, यह बात तो समझ में आती है, परन्तु संसार के रस को सारहीन समझने के कारण मोक्ष के रस से परिपूर्ण बने हुए महारथियों को भी राग की लपटें कैसे लपेट में ले लेती हैं ? विराग के बाग की सैर करनेवाले भी इस आग के सिकंजे में जकड़ जाते हैं। श्रमणोपासकों की सुरम्य जीवनकथा में हम देखते आए हैं कि संसार में होते हुए भी धन-परिवार और मान-मर्यादा से दूर होने का अद्भुत पराक्रम ये महानुभाव कर सके हैं। कठोर साधना में लीन बने रहने के लिए शरीर प्रति कठोर और कर्म के प्रति क्रूर बने हैं । देव के परीक्षाओं की तीक्ष्णता पर भी निर्भीक रहने में भी उनकी विराग-परिणति सहायक बनी है।
परन्तु कभी-कभी उन साधकों को भी राग की आग किस प्रकार झुलसा देती है? ....
तीन-तीन पुत्रों को उनकी आँखों के सामने मार डाले, उनके शरीरों के तीन-तीन, पाँच-पाँच या सात-सात टुकड़ा कर उसे तलकर उसके रक्त-मांस का छिड़काव करे, फिर भी वहविचलित नहो, यहक्या छोटा-मोटा वैराग्य है?
गृहस्थावस्था में रहकर भी इतनी निःस्पृहता एक अद्भुत आदर्श है। परन्तु इससे भी अधिक किसी को वात्सल्यमयी माता की ममता, किसी
प्रभुवीर के दश श्रावक...