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________________ धर्म प्राप्ति और गृह व्यवस्था चम्पानगरी की ईशान दिशा में पूर्णभद्र चैत्य में एक बार भगवान श्री महावीरदेव का पदार्पण हुआ। राजा-प्रजा ने और कामदेव गाथापति ने प्रभु की वाणी का श्रवण किया। अनेकजीवों ने सर्वविरति आदि के परिणाम प्राप्त किये। आनन्दश्रावक की भांति कामदेव ने सम्यक्त्व सहित बारह व्रतों का स्वीकार किया। उसकी पत्नी भद्रादेवी ने भी श्राविकाधर्म का स्वीकार किया। सुखरूप धर्मसाधना करते हुए चौदह वर्ष धर्मपरायण रहकर व्यतीत किये। घर में रहते हुए भी निर्मल सम्यग्दर्शन के प्रताप के कारण ऐसे अलिप्त भाव से रहते थे कि 'घर में रहते हुए भी घर से अलगथे।' एक बार धर्मजागरिका करते हुए रात को किए गए विचार के अनुसार जाति-सम्बन्धी तथा परिजनों की उपस्थिति में ज्येष्ठ पुत्र को धर की जिम्मेदारी सौंपकर पौषधशाला में दर्भ के संथारा पर रहकर श्रावक की प्रतिमा का वहन करने लगे। गृह व्यवस्था सौंप दी उस दिन से त्रिकरणयोग के द्वारा तच्चित्ते-तम्मणे इत्यादि रूप में प्रभुवीर से प्राप्त साधना में लीन हो गये। . देव का उपसर्ग और विजय साधना का मार्ग ही शूरवीर का मार्ग है। कसौटी कंचन की ही होती है। एकाकार होकर साधना करनेवाले को विघ्न आने की संभावना रहती ही है। एक रात्रि एक मिथ्यात्वी देव प्रतिमाधारक श्री कामदेव महाश्रावक के सामने अति विकराल-बीभत्स स्वरूप में प्रगट हुआ और कहने लगा। 'हे कामदेव, जिसकी कोई इच्छा नहीं करता है, ऐसी मृत्यु की तुम कामना कर रहेहो?' तुम, जिसका दुःखमय अन्त हो, ऐसे लक्षणवाले हो। खराब चतुर्दशी या अमावस्या के दिन तूने जन्म लिया है, ऐसा लगता है। ...................... प्रभुवीर के दश श्रावक ३१
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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