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________________ snail. श्री गौतमस्वामीजी का आगमन — इस अरसे में भगवान महावीर स्वामीजी वाणिज्यग्राम के दुतिपलास चैत्य में पंधारे । दीक्षा-स्वीकार के दिन से छट्ठ के पारणे छठ करनेवाले लब्धिके भण्डार श्री इन्द्रभूति गौतम महाराज भी पधारे हैं। लोगों प्रभु की वाणी का श्रवण करके जाने के बाद भिक्षा के समय पारणा का दिन होने के कारण प्रभु की आज्ञा लेकर श्री गौतम महाराज भिक्षा के लिए जाते हैं । यथाविधभिक्षाचर्या कर वापस आते समय कोल्लाकसन्निवेश के पास से गुजरते समय परस्पर बातें करते हुए लोगों के मुख से भगवान महावीर के अन्तेवासी आनन्द श्रावक पौषधशाला में अन्तिम मारणान्तिक संलेखना ग्रहण कर जीवन-मृत्यु की आकांक्षा के बिना आराधना में लीन है।' ऐसा सुना और 'मैं जाऊ व आनन्दश्रमणोपासक को देखें' ऐसा विचार कर पचास हजार केवली शिष्यों के गुरु श्री गौतम महाराज आनन्द श्रावक जिस पौषधशाला में है, वहाँ पधारे । प्रभु को आते हुए देखकर आनन्दश्रावक भावविभोर बन गये और निवेदनपूर्वक अपनी शारीरिक स्थिति बतलाकर नजदीक पधारने को कहा और उनके चरणों में भावपूर्वक वन्दना की। उसके बाद अवधिज्ञान के बारे में प्रश्न किया, 'प्रभु! क्या श्रावकको अवधिज्ञान होता है ?' श्री गौतमस्वामी ने कहा :: हाँ, हो शकता है!' . .. कैसा हैजैनशासन का विनयोपचार? • स्वयं अशक्त है, फिर भी इच्छाकारपूर्वक नजदीक आने की प्रार्थना करता है।और गौतम महाराज भी उसकी भावना को ध्यान में रखते हुए उसके नजदीक जाते हैं और नम्र भाषा में आनन्द भी जिज्ञासापूर्वक प्रश्न पूछते है। आनन्द का प्रश्न और शुद्धि ... श्री गौतम भगवान ने जब कहा कि अवधिज्ञान श्रावक को भी हो सकता है और आनन्द ने स्वयं को हुए अवधिज्ञान के प्रमाण का वर्णन किया तो श्री गौतमस्वामीजी जैसे महापुरुष को आश्चर्य हुआ । इतना ही नहीं छद्मस्थावस्था की विचित्रता तो वहाँ है कि उन्होंने आनन्द से कहा : 'हे ! आनन्द... तू इस स्थान की आलोचना कर ! और तप को स्वीकार कर ! कारण कि श्रावक को अवधिज्ञान होता है, पर इतना नहीं।' प्रभुवीर के दश श्रावक............ २४
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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