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________________ | पिशाच द्वारा संपत्ति अरुणसिद्ध चुल्लशतक बहुला आलंभिका | . विमान |विनाश की धमकी। मुद्रा और खेस का अपहरण, अरुणध्वज ६ कुंडकौलिक पूषा काम्पिल्चपुर| विमान | देव द्वारा गोशाला के मत की प्रशंसा और स्पष्ट देवसूचन, प्रभुप्राप्ति, वसतिदान, अरुणभूत | प्रभु के प्रश्न, प्रतिबोधदेव से | सकडालपुत्र | अग्निमित्रा | पोलासपुर विमान | स्खलित होने पर पत्नी द्वारा स्खलित हान पर पत्ता वा | स्थिरता की प्राप्ति। रेवतीआदि अरुणावतंसक धर्महीन पत्नी रेवती के उपसर्ग, महाशतक राजगृह विमान अचलता, ज्ञानोपयोग। ९ / नन्दिनीपिता अश्विनी | श्रावस्ती अरुणगव विमान निरुपसर्ग साधना | १० सालिहीपिता फाल्गुनी | श्रावस्ती अरुणकील विमान निरुपसर्ग साधना इन दसों श्रावकों ने प्रभु को प्राप्त करने के बाद व्रतो के अंतर्गत लगभग इक्कीस विषयों में अपने जीवन को मर्यादित बनाया था। जिसका वर्णन यथावसर किया जाएगा। तीन श्रावकों आनन्द, कामदेव और महाशतक ने अवधिज्ञान प्राप्त किया था। दसोंने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की विधिपूर्वक आराधना की थी और अन्त समय में निर्यामणा पूर्वक सौधर्मदेवलोक के विमानों में चार-चार पल्योपम आयुष्य के बाद महाविदेह क्षेत्र में सिद्धिपद को प्राप्त करनेवाले हैं। उत्कृष्ट श्रावकत्व की आराधना करने के बावजूद साधुजीवन की मर्यादा और अपनी क्षमता के ज्ञाता वे साधुजीवन न स्वीकार सके । तो भी साधुता के और साधुभगवन्तों के प्रति उनका आदर अवर्णनीय था।और इसीलिए वे श्रेष्ठ श्रावकत्व का पालन कर सके थे। संत्रकार महर्षि ने प्रथम अध्ययन में श्री आनन्दश्रावक के जीवनचरित्र का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने स्वीकार किए गए व्रतों तथा अतिचारों का जो वर्णन किया है, वह लगभग सबके लिए समान है। ... .. प्रभु को प्राप्त करने के पूर्व भी..... ___ प्रभु महावीरदेव के मामा श्री चेटक महाराजा की वैशाली नगरी के पास वाणिज्यक नामक नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता है। नगर के बाहर ईशान दिशा में दूतिपलास नामक यक्षमन्दिर से सुशोभित एक उद्यान है। श्री आनन्द नामक गाथापति इस नगर में रहता है। उसकी विशेषता का वर्णन करते हुए अड्डेजाव अपरिभूए' शब्द का प्रयोग सूत्रकार ने किया है। प्रभु के सुयोग को प्राप्त करने से पूर्व, मार्गानुसारी कक्षा के अद्भुत . प्रभुवीर के दश श्रावक.. ........... .
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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