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________________ अर्थात् जन्म से ही जैन नहीं थे । प्रभु की पहली ही पर्षदा में या एक साथ बोधप्राप्त नहीं किया है । उनके निवास गाँव पर अथवा जहाँ प्रभु का पदार्पण होते वहाँ प्रभु की एक ही देशना से प्रतिबोधप्राप्त कर उन्होंने श्रावकत्व को स्वीकार किया है । सभी के श्रावकत्व का पर्याय २० वर्षों का है । उनमें से १४ वर्षों तक गृहभार वहन किया है और अन्तिम ६ वर्ष अभिग्रह स्वरूप प्रतिमाओं को वहन करने का काल है । स्वयं प्रभु महावीरदेव ने उपसर्गों को सहन करनेवाले कामदेव श्रावक की उपस्थिति में श्री गौतमादि महामुनियों से कहा था कि ' हे महात्माओ ! इन श्रावकने आगमरूपी आईना देखा भी नहीं है, फिर भी इतना सबकुछ-सहून कर रहा है, आप क्या करते हो ?' यदि हमारे लिए भी इनकी जीवन- कथाएँ आदर्शरूप बन सकें तो महानुभावो ! आपके लिए यह कितना जरूरी है, यह आप समझ सकते हैं । जीवनसार इस सूत्र के दस अध्ययनों में इन दसों श्रावकों के जीवन का वर्णन किया गया है। उनमें सबसे पहले आनन्द श्रावक के वर्णन में सारी बातें विस्तार से समझाई गई हैं। उसके बाद के वर्णन में आवश्यकतानुसार विशेषताओं का वर्णन किया गया है। हमने भी यथासम्भव इसे संक्षेप में भी पढ़ने का विचार किया है। सबसे पहले दसों श्रावकों का संक्षिप्त जीवन-सार देखेंगे, उसके बाद एक-एक अध्ययन की चर्चा करेंगे । पत्नीनाम देवबिमान अरुण विमान (सौ. कल्प) क्रम 3 उन्होंकी सुरम्य जीवनकथा हमें देखनी है । उन्होंकी जीवनकथा ऐसी है, जो साधु के लिए भी प्रेरक है । १ २ नाम आनन्द शिवानन्दा नगरनाम वाणिज्य ग्राम कामदेव भद्रा ३ चूलनीपिता श्यामा वाराणसी ४ सुदेव धन्या वाराणसी चम्पा अरुणाभ विमान अरुणप्रभ विमान अरुणकान्त विमान विशेष घटनाएँ अवधिज्ञान के विस्तार के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामीजी को सन्देह और क्षमायाचना। पिशाच का उपसर्ग और अन्त तक अविचल । पिशाच द्वारा माता भद्रा के वधकी बात से चलचित्त । पिशाच द्वारा सोलह भयंकर रोग की धमकी । - प्रभुवीर के दश श्रावक
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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