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________________ सोच-विचार कर श्रावकजीवन जीने का भाव प्रभु के समक्ष रंजु किया । २० साल के श्रावक जीवन में अंतिम छेः साल तक श्रावक प्रतिमाओं की कडी साधना कर श्रेष्ठ साधक के रुप में प्रसिद्ध हुए, खुद परमात्माने भी इन श्रावको की श्रेष्ठता का वर्णन अवसर अवसर पर कीया। एसे महानुभावो की जीवनकथा वाचना के रुप में 'उपासक दशांग' आगम सूत्र के माध्यम से पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय श्रेयांसप्रभसूरीश्वरजीमहाराजाने बम्बई माधवबागलालबागमें शेठ मोतिशा जैन उपाश्रय में फरमाई थी । जो श्री मुक्तिकिरण- गुजराती में प्रगट होने के बाद किताब के रुपमें भी दो आवृतियाँ प्रगट हो चूकी। आज इनका हिन्दी संस्करण प्रगट होने जा रहा है । SPAPALL श्री आत्मारामजी महाराज स्वर्गदिन- ज्येष्ठ शुक्ल ८, बुधवार दि. ११ जून २००८ -गृहस्थ जीवनमें भी श्रेष्ठ साधना करनेवाले इन १० महानुभावो की यह जीवनकथा अपनी चेतना को जागृत करे और हम भी अपनी क्षतियों को दूर करके धर्म साधना में लगे, एसी प्रार्थना के साथ आपको बार-बार पढने की विनंती करते है । - NAAI.... AWAAIZ... शा. रमेशभाई पादरावाले पं. परेशभाई शिहोरीवाले का सबहुमान प्रणाम MAAIZ... AMAKA.. ALAAJA... STAVAZ
SR No.002240
Book TitlePrabhu Veer ke Dash Shravak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size21 MB
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