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________________ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम है, बल्के प्रकृति का वैविध्यपूर्ण परिवेश ही बद्धवचनों को समझने के लिए एक कोश समान है। अपने सिद्धांतो की अभिव्यक्ति के लिये प्रकृति के सनिवेशों से कोई न कोई घटना या तत्त्व-पदार्थ को वे दृष्टांत के तरीके से प्रस्तुत करते हैं। प्रकृति के प्रत्येक तत्त्वों के प्रति उनका मन समभावपूर्ण और संवेदनशील है। अपनी तपश्चर्या का वर्णन करते हुए वे कहते हैं कि 'सारिपुत्र, ऐसी मेरी करुणा थी, मैं प्राणियों और छोटे छोटे जीव-जंतुओं का ध्यान रखकर आता-जाता था । जलबिंदु के प्रति भी मेरी अनुकंपा थी। विषम स्थानों में रहते हुए क्षुद्र जीवों की हिंसा न हो जाय, इसके लिये भी सतर्क रहता था ।' . "सो खो अहं सारिपुत्त, सतो व अभिक्कमामि, सतो व पटिक्कमामि, याव उदक बिन्दुम्हि पि में दया पच्चुपठ्ठिता होति - मा खुद्दक पाणे विसमगंते सङ्घातं आपादेसि'ति ।" विनयपिटक में भिक्ख पातिमोक्ख में भिक्षुओं के लिए जो नियम बताये गये । हैं उसमें भी प्राकृतिक तत्त्वों की सुरक्षा की भावना प्रगट होती है। पाचित्तिय के दसवें नियम में कहा है : "यो पन भिक्ख पथवि खणेय्य वा खणापेय्य वा, पाचित्तियन्ति ।" यहां भमि खोदने का निषेध किया है, इससे बहुत छोटे छोटे जीवों की हानि होती है। जंतुयुक्त पानी पीने का और प्राणि को मारने के लिए भी मना किया है। जैसे कि, यो पन भिक्खु सञ्चिच्च पाणं जीविता वारोपेप्य पाचित्तियन्ति । . यो पन भिक्खु जीनं सप्पाणकं उदकं परिभुञ्जेय्य पाचित्तियन्ति । यहाँ प्रत्यक्ष हिंसा का स्पष्ट निषेध हैं। तृण-वृक्ष आदि काटने में भी दोष लगता है । तथागत ने स्पष्ट कहा है, भूतगामपातव्यताय पाचित्तियन्ति । इतना ही नहीं, कुटि के निर्माण समय उसके द्वार खोलने या बंध करते समय, जंगले घुमाने समय या लींपने के समय में भी हरियाली - या वनस्पति को नुकशान न पहुंचे, उसके लिए ध्यान रखने का स्पष्ट उपदेश गिया है। कुटि निर्माण के लिए स्थल पर के अथवा आसपास के वृक्षों का काटना भी निषेध हैं । . पग के पादत्राण या जूते बनाने के लिए भी वृक्षों की छाल का उपयोग नहि करने के आदेश में भी वृक्षों की सुरक्षा का खयाल निहित है। गौतम बुद्धने भिक्षुओं से कहा था - "भिक्षुओ को ताल के पत्र की.... बांस के पौधो की.... तृणं की...
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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