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________________ धर्म और विज्ञान का समन्वय से संत्रस्त तथा आन्तरिक रूप से अशान्त, असंतुलित और अव्यवस्थित रहता है। आधुनिक चिकित्साविज्ञान मनुष्य के परिपूर्ण स्वास्थ्य की अवधारणा को समुचित रूप से विकसित नहीं कर पाया है। यह शारीरिक और मानसिक पक्षों के उद्घाटन में अवश्य सफल हुआ है, लेकिन इसने आत्मिक पक्ष की पूर्ण उपेक्षा की है। इसके विपरित भारतीय योगविज्ञान मानव-व्यक्तित्व के तीनों आयामों - शारीरिक, मानसिक और आत्मिक - का समन्वय और समाहार करता है । आसन और प्राणायाम की उपयोगिता आज वैज्ञानिक परीक्षणों से भी सिद्ध हुई है। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता : विज्ञान की दो महत्त्वपूर्ण विशेषतायें हैं : प्रयोग और परीक्षण । हम धर्मशास्त्र-प्रेरित अथवा धर्मगुरु द्वारा कथित धार्मिक आचार का पालन (प्रयोग) तो करते हैं लेकिन परीक्षण करने की आदत नहीं है । हम धर्म को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें कि वह आंतरिक और बाह्य जीवन में संतुलन एवं शांति की स्थापना करने में सफल हुआ है या नहीं। आध्यात्मिक आचार्यों ने आत्मा और आध्यात्म दोनों के अस्तित्व और सार्वभौम नियमों का अध्ययन किया है। जब वैज्ञानिकों ने भौतिक जगत का अध्ययन किया है। अध्यात्म का केन्द्रिय तत्त्व है आत्मा और विज्ञान का केन्द्रिय तत्त्व है भौतिक जगत् ।। :: सामाजिक धर्म की दृष्टि से विज्ञानने अणु-परमाणु के क्षेत्र में बहत महत्त्वपूर्ण संशोधन किया। लेकिन मनुष्योंने और राष्ट्रोंने इसका उपयोग अपनी लोभवैर-वैमनस्य और द्वेष की घृणित वृत्तियों की - तृष्णाओं की तृप्ति के लिया किया - फलस्वरूप वैर और द्वेष की आगने ज्यादा भीषण रूप लिया है । यदि अहिंसा आदि धार्मिक नीति के अनुसार मनुष्यमात्र के शुभ-मंगल और हित के लिये वैज्ञानिक साधनों का उपयोग हो सके तो वह सबसे श्रेष्ठ वरदानरूप है, अन्यथा महाविनाशकारी अभिशाप । आईंस्टाईनने कहा था : 'अध्यात्म के बिना विज्ञान और विज्ञान के बिना अध्यात्म क्रमशः लंगडा और अंधा है।' वे महाविज्ञानी का यह कथन पूर्णतः सत्य है। वैज्ञानिक युग में सुविधा के साधन बहुत विकसित हुए हैं, साथ में अपराध बड़े हैं, आत्महत्या, आतंकवाद, मादक वस्तुओं के सेवन की प्रवृत्ति और तनाव - ये सब बढ़े हैं। क्या यह भोगवादी दृष्टिकोण की नियति है या और कोई कारण है ? इस परिस्थिति ने मानवीय चिन्तन को कुछ नये ढंग से सोचने के लिये विवश किया है और वह चिन्तन ही पुनः मुडकर देखने का बिन्दु बन गया है । . .. राग, द्वेष, मोह, लोभ आदि कषायों से विमुक्त चेतना आध्यात्मिकता का
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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