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गुजराती साहित्य में बौद्धदर्शन का प्रभाव
तथागत बुद्ध की करुणा, अहिंसा और जगत के दुःखों के शमनके लिये किये गये महाभिनिष्क्रमणसे अर्वाचीन कविकी चेतना निःसंशय प्रभावित हुआ बीना नहि रह सकती - और जब कि आज विश्व के सब लोग यंत्रसंस्कृति की यंत्रणा और हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में दौमनस्य का निरंतर अनुभव करते हैं । . अर्वाचीन गुजराती काव्य-साहित्य में गौतम बुद्ध विषयक और उनकी विचारधारा से प्रभावित अनेक काव्य उपलब्ध हैं । श्री नरसिंहराव दिवेटियाने 'बुद्धचरित' काव्य में गौतम बुद्ध का जीवन निरुपित किया है। अन्य काव्यों की तुलना में सुंदरम् के बुद्धविषयक काव्य भाषा और काव्यतत्त्व की दृष्टि से सफल
और सविशेष उल्लेखनीय रहे हैं । 'बुद्धना चक्षु' काव्य में उनका प्रेमपूर्ण कारुण्यसभर व्यक्तित्व तादृशरूप से प्रगट हुआ है -
भले उग्यां विश्वे नयन नमणां ओ प्रभु तणां, ऊग्यां ने खिल्यां त्यां किरणकणी आछेरी प्रगटी, प्रभा त्यां फेलाई जगत पर दिव्या मुद तणी,
हसी सृष्टि हासे दल कमलनां फुल्ल बनियां.
भगवान बुद्ध के नयन इस विश्व में धीरे धीरे खुल रहे हैं । नेत्र में से प्रगटती हुई ज्योति दिव्य आनंद की अनुभूति करती है । कवि उन्हें हृदय से आवकार देते हैं । उनके आने से सारी सृष्टि प्रसन्न हो ऊठी है। . आगे कवि कहते हैं कि और सभी अवतार में प्रभुनें अधर्म-नाश के लिये कोई न कोई शस्त्र का उपयोग किया है। जैसे कि कोदण्ड, परशु, चक्र आदि - अंततः नख और दंत का भी उपयोग किया है। लेकिन बुद्धावतार में उनके करुणापूर्ण नेत्र ही अपने आप शांति स्थापनाके लिये परिपूर्ण और अवतार के हेतु को सफल