SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम नहि होगा । मदिरा जैसी नशीली वस्तु व्यक्ति और समष्टि का अहित करती है । विषयुक्त पदार्थ का व्यापार निषिद्ध है और चोरी से भी आजीविका नहीं करने का आदेश हैं। पर्यावरण, मानव संसाधन और विकास की पारस्परिक निर्भरता सर्वविदित है। इनका सन्तुलन जहाँ विकास को प्रशस्त करता है, वहाँ इनका असन्तुलन स्थापति व्यवस्था को कालकवलित कर देता है । अंधाधुंध वृक्षोकी कटाई, भूमिगत जल का भारी दौहन, खनन हेतु पर्वत शृंखलाओं का क्षरण, कारखानों के शोरगुल व वाहनों के धुएं के कारण फैलता ध्वनि व वायुप्रदूषण सारी मानवजाति के सन्मुख अस्तित्व, की चुनौति प्रस्तुत कर रहे हैं। यह कैसा भ्रामक विकास हैं कि आनेवाले पीढी के पास ट्युबवेल तो होंगे मगर पानी नहीं होगा, आधुनिकतम वाहनं तो होंगे मगर ईधन नहीं होगा, वातानुकूलिन यंत्र तो होंगे मगर ऑक्सिजन नहीं होगी। ___ इस समस्या का निराकरण संयमपूर्ण जीवन से हो सकता है। साधक वैयक्तिक रूप से भी अपने जीवन की दैनिक क्रियाओं - जैसे आहार-विहार अथवा भोगोपभोग का परिमाण भी निश्चित करता है। जैन परम्परा इस सन्दर्भ में अत्यधिक सतर्क है। व्रती गृहस्थ स्नान के लिए कितने जल का उपयोग करेगा किस वस्त्र से अंग पोंछेगा यह भी निश्चित करना पडता है । दैनिक जीवन के व्यवहार की उपभोगपरिभोग की हरेक प्रकार की चीजों की मात्रा और प्रकार निश्चित किये जाते हैं । इस तरह बाह्य चीज-वस्तुओं के संयमित और नियंत्रित उपयोग से पर्यावरण का संतुलन हो सकता है। लेकिन यह नियंत्रण व्यक्ति को अपने आप सिद्ध करना होगा। इसके लिए उसे क्रोधादि कषायों से मुक्त होना पडेगा । राग, अहंता, क्रोध, गर्व आदि कषायों पर विजय पाने के बाद ही व्यक्ति की चेतना अपने और पराये के भेद से उपर उठ जाती है । और आयातुल पायेसु .... अन्य में भी आत्मभाव की अनुभूति करती हैं । अहिंसक आचरण के लिए मनुष्य के मनमें सर्व के प्रति मैत्रीभावना, आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना सदा जागृत होनी चाहिए, अन्यथा उसका व्यवहार स्व-अर्थ को सिद्ध करनेवाला ही होगा, जो सामाजिक जीवन में विषमता उत्पन्न कर सकता है। व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में संघर्ष और राग-द्वेषादि कषायों : .. हमारे व्यक्तिगत जीवन में क्लेषादि भावरूप वृत्तियाँ और विचारधारायें हैं जिनके कारण व्यक्ति के अंगत और सामाजिक जीवन में अशांति और विषमता उत्पन्न
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy