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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
सप्तसार्द्धं नाभिंमेद्र - मूरू अष्टादश स्मृताः ॥ १६ ॥ जान्वङ्गुलत्रयं प्रोक्तं जंघे अष्टादशाङ्गुले । पादोत्सेधस्त्रिमात्रस्तु मनुजाः सप्ततालके ॥ १७ ॥
अब सात ताल के मान से अवयवों का पृथक-पृथक मान कहते हैं— केशान्त (मस्तक) तीन अङ्गुल, मुख बारह अङ्गुल, गला तीन अङ्गुल, छाती साढ़े सात अङ्गुल, पेट नव अङ्गुल, नाभि से लिंग तक का मान साढ़े सात अङ्गुल, लिंग से जानु तक ऊरु का मान अठारह अङ्गुल, घुटना तीन अङ्गुल, जानु (घुटना) से पैर की गाँठ तक अठारह अङ्गुल और पैर की गाँठ से पैर के तल भाग तक तीन अङ्गुल, इस प्रकार कुल चौरासी अङ्गुल का मान ऊँचाई का है ।
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In a figure of 7 talas, the dimensions should be the following :-the keshanta (tip of forehead ) is 3 angulas, face 12 angulas and neck 3 angulas. ( 15 ).
The chest should be 7 1/2 angulas and middle (?stomach) 9 angulas. The distance from the navel to the end of the torso (medra ) should be 7 1/2 angula, and from the medra through the thigh and to the knee 18 angulas. ( 16 ).
The knee should be 3 angulas, the distance between the knee and ankle 18 angulas, and the distance from the ankle to the sole of the foot 3 angulás. (The complete statue thereby having a height of 84 angulas). (17).
साढ़े सात ताल के मान से अवयवों का मान
सप्तसार्द्धं प्रवक्ष्यामि तालं मङ्गल-शुक्रयोः । बुधसौर्योस्तथा ज्ञेयं केशान्तं च त्रिमात्रकम् ॥१८॥ वक्त्रं द्वादशमात्रं तु ग्रीवा चैव त्रिमात्रिका | दशमात्रं भवेद् वक्षो नाभिमेढ्रं तथोदरम् ॥१९॥
अष्टादश भवेदूरु-र्जानु मात्रा त्रयं स्मृतम् ।