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देवतामूर्ति-प्रकरणम् सात भाग रहे, उनका फिर तीन भाग करना, इनमें से दो भाग के मान की प्रतिमा बनाना और एक भाग की पीठिका बनाना। यह खड़ी प्रतिमा का मान समझना । यदि बैठी प्रतिमा बनाना हो, तो दो भाग की पीठिका और एक भाग की प्रतिमा बनाना चाहिये।
As regard the doors of shrines, here are the recommended proportions -
In the case of a large-scale statue, divide the height of the entrance (the dvar) into 8 portions. Leaving out the upper-most 1/8th (16), sub-divide the remaining 7/8th into 3 parts. The statue' should be equal to 2 of these 3 parts, and the statue's base equal : to the remaining 1 part in scale, in the case of a standing image. - These proportions should be reversed for a seated statue - with the base being 2 parts and the statue itself 1 part. (17a). .
द्वार मान से मध्यम मान की प्रतिमा का मान. द्वारं विभज्य नवधा भागमेकं परित्यजेत् ॥१७॥
अष्टौ भागांस्त्रिधा कृत्वा द्विभागे प्रतिमा भवेत् ।
द्वार की ऊँचाई का नव भाग करके ऊपर का एक भाग छोड़ देना, बाकी जो आठ भाग रहे, उनका फिर तीन भाग करना, इनमें से दो भाग की प्रतिमा और एक भाग की पीठिका बनावें । .
For a medium-scale statue, the height of the door-way should be divided into 9 parts. Leaving out the uppermost 1/9th portion (17), the remaining 8/9th should be sub-divided into 3 parts. The idol should be equal to 2 of these parts and its pedestal 1 part (18a).
द्वार मान से कनिष्ठ प्रतिमा का मान
त्रिभागै जिते द्वारे द्विभागेऽर्चा प्रकीर्तिता ॥१८॥ भागमेकं भवेत् पीठं कनिष्ठा मध्यमोत्तमा। .