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________________ 267 देवतामूर्ति-प्रकरणम् शूलासिशक्तिचक्राणि पाशं खेटायुधाभयम् । डमरु शक्तिकां वामैर्नागपाशं च खेटकम् । कुठारांकुशचापांश्च घण्टाध्वजगदास्तथा ॥ आदर्शमुद्गरान् हस्तैः गदाशङ्खपवीनपि ॥१५॥ ऊर्ध्वादिक्रमयोगेन बिभ्रती सासवा शुभा ॥ शस्त्रोद्यतकर: क्रुद्धस्तद् ग्रीवा सम्भव: पुमान् ॥९६ ॥ शूलभिन्नो वमद्रक्तो रक्तधूमूर्ध्वजेक्षणः । सिंहेन खाद्यमानश्च पाशाबद्धो गले भृशम् ॥९७ ॥ यात्यहो क्रान्तसिंहा च सव्यं द्यौलीढगासुराः (?)। याम्याद्यांक्रान्तसिंहा च सव्याडिनियमासुरैः। चण्डी चोद्यतशस्त्रा च महिषासुरघातिनी ॥९८ ॥ इति चंडी। __ अब चण्डी देवी का वर्णन करते हैं। वह कनकवर्णा, सुरूपधारिका, तीन · नेत्रों वाली, सदा तरुणी, पीतवर्णी पीनपयोधर वाली, एक मुख वाली, सुन्दर ग्रीवा वाली. और बीस भुजाओं वाली है। दक्षिण भुजाओं में त्रिशूल, तलवार, शक्ति, चक्र, पाश, खेट, आयुध, अभय, डमरू और शक्तिका धारण करती हैं। तथा वाम भुजाओं में नागपाश, खेटक, कुठार, अंकुश, धनुष, घंटा, ध्वजा, गदा, शंख और वज्र को धारण करती है। इन समस्त आयुधों को उर्ध्वादि क्रम योग से धारण करती हैं। देवी मदविहारिणी और शुभकारी है। शूलविद्ध पुरुष रक्त वमन करता हुआ, रक्त भ्रू वाला, ऊपर की ओर देखता हुआ, सिंह द्वारा भक्ष्य, पाश द्वारा • बंधी हुई गर्दन वाला पैरों तले है। आक्रमणशील सिंह पर सवारी करने वाली है। वाम चरण आकाश की ओर उठा हुआ है। उद्यत शस्त्र है, महिषासुरधातिनी - और त्रिनेत्रा चण्डी देवी है। 1. The appearance of the beautiful Chandi is recited now. ** अन्तर्गत पाठ मु. में नहीं है, किन्तु टिप्पणी में अ. ५०, श्लोक १-३ में है।
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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