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देवतामूर्ति-प्रकरणम् श्रुवस्रुचौ च कर्त्तव्यौ तथा वेदिकमण्डलुः। दण्डशक्तिश्च कर्त्तव्या कृष्णाजिनहुताशनौ ॥१२॥ हस्तानां भद्रकाल्यास्तु भवेत् (कौतस्तु?) शोभन:। एकश्चैव महाभाग रत्नपात्रधरो भवेत् ॥९३ ॥ ..
मनोहारिणी भद्रकाली अट्ठारह भुजाओं वाली (चार सिंह वाले रथ पर) आलीढ मुद्रा में खड़ी है। (दक्षिण चरण को आगे बढाकर और वाम चरण को पीछे आकुंचित किये हुए है। ऐसी मूर्ति सौख्यदायक होती है। बायें हाथों में
अक्षमाला, त्रिशुल, खड्ग, चक्र, बाण, धनुष, शंख औद् पद्म हैं। दायें हाथों में ' पानपात्र, करछा, वेदी, कमडण्लु, दण्ड, शक्ति, कृष्णचर्म और अग्नि है। भद्रकाली के हाथों में एक में कौत (वरद) है और एक में रत्नपात्र है।
Make the fascinating goddess Bhadrakali with eighteen arms. She rides a chariot pulled by four lions. She should be depicted :: standing in the aleeda posture (with the right knee advanced and the left leg retracted). The goddess bestows happiness. (90)
In her hands are a string of prayer-beads, a trident, a sword, a disc, an arrow, a bow, a conchshell and a lotus. (91).
Depict, in her other hands, a shruva and a srucha (both being ladles or spoons used for offering oblations in a sacrificial fire), and a vedi (sacrificial altar), a kamandalu, the rod of danda, the shakti weapon, the skin of a black antelope, and sacrificial fire. (92).
These are resplendent in the hands of Bhadrakali, as is the hand held in the Kaut or blessings (Varad) posture, and the auspicious vessel of jewels - Ratna-patra – held in another hand. (93). चण्डी देवी
निगद्यते ह्यथो चण्डी हेमभासा सुरूपिणी। त्रिनेत्रा यौवनस्था च पीतपीनपयोधरा ॥१४॥ एकवक्त्रा तु सुग्रीवा बाहुविंशतिसंयुता।