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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
दश जाति की पीठिका के नाम
स्थण्डिला चैव वापी च यक्षी वैरी' तथैव च। मण्डला पूर्णचन्द्रा च वज्रपद्माकृतिस्तथा ॥ १४२ ॥ अर्द्धचन्द्रा त्रिकोणा च विज्ञेया दश पीठिकाः। *एतासां रूपसंस्थानं कथयामि विबोधये ॥ १४३॥ .
स्थंडिला, वापी, यक्षी, वैरी (वेदी), मंडला, पूर्णचन्द्रा, वज्र, पद्मा, अर्द्ध चन्द्रा और त्रिकोणा ये दश प्रकार की पीठिका के नाम हैं। अब उसके स्वरूप और ' संस्थान को मनुष्य के बोध लिये कहता हूं।
The names of the ten types of peethikas are as follows:-(i) Sthandila, (ii) Vapi, (iii) Yakshi, (iv) Vairi (Vaidi), (v) Mandala, (vi) Purna-Chandra, (vii) Vajra, (viii) Padma-akriti (142), (ix) Ardha-Chandra and (x) Trikona.
Now I (Mandan) shall tell you about their form and placements so that even someone unversed in wisdom may understand. (143). दश प्रकार की पीठिका का स्वरूप
चतुरस्रा' स्थण्डिला स्यात् संयुता मेखलैकया *द्विमेखला भवेद्वापी यक्षी चैव त्रिमेखला।
चतुरस्रायता वेदी सर्वकामफलप्रदा ॥ १४४ ॥ 1. मत्स्यपुराण में अ. २५२ श्लोक ६ वेदी लिखा है।
मत्स्यपुराण अ. २५३ श्लोक ८ स्थंडिला चतुरस्रा तु वर्जिता मेखलादिभिः अर्थात् मेखला रहित सम चौरस की पीठिका हो वह स्थंडिला है।
मु. यदा। 4. चतुरस्रायता वेदी न तां लिगेषु योजयेत् । एक पीठिका संम चोरस हो वह वेदी नाम की है
उसे शिवलिङ्ग में बनाना नहीं चाहिये। मत्स्यपुराण अ. २५२ श्लोक ९। .. मु. आधाश्लोक नहीं है।