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________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् * " उच्छ्रयं यत्तु पीठस्य त्रिंशच्च परिभाजितम् ॥ १३५ ॥ भागैकं भूगतं कार्य त्रिभागं कण्ठपट्टिका । भागार्द्धं मुखपट्टं च स्कन्धं सार्द्धत्रिभागतः ॥ १३६ ॥ स्कन्धं च पट्टिका द्वन्द्वं भागार्थं चान्तपट्टिका । कर्णिकं' सार्द्धद्वयं भागे भागेकैकं तु चिप्पिका । द्विभागं चान्तरपट्टं च कपोतालिर्द्विसार्द्धकम् ॥ १३७ ॥ अर्धपञ्चग्रासपट्टी कर्त्तव्या विधिपूर्वकम् । अर्द्ध स्कन्धपट्टिकाख्या त्रिभागं स्कन्धशोभनम् ॥ १३८ ॥ अर्द्धमुखपट्टिकाख्या कर्णिकैश्चतुर्भागकैः । शोभनमष्टभागैकं कर्त्तव्यं तमशंकिते । १३९ ॥ नवपीठ (नाम का पीठ) कामदायक है। इसके मध्य में मेख़ला बनाई जानी चाहिए। पीठ की ऊंचाई को तीस भागों में बांट लें। एक भाग धरती पर होगा I तीन भागों की कर्णपट्टिका होगी। आधे भाग का मुखपट्ट होगा । स्कन्ध की ऊंचाई साढे तीन भाग होगी। स्कन्ध और कर्णपट्टिका के बीच में (दो पट्टिकाओं के बीच में) आधे भाग की अन्तर्पट्टिका होगी। ढाई बाग का कर्णिक होगा । एक भाग की चिप्पिका होगी। दो भाग का अन्तर्पट्ट होगा और ढाई भाग की कपोताली होगी। ग्रास पट्टि साढे पांच भाग की होगी जो कि विधिपूर्वक बनाई जानी चाहिए। आधे भाग में स्कन्ध पट्टि होगी। और तीन भाग स्कन्धशोभन होगा । अर्धमुखपट्टिका नाम की पट्टिका कर्णिका के चार भागों से बनेगी। शोभन आठ भागों के एक भाग से बनाना चाहिए - अशंकित भाव से । 190 The nava-peetham fulfills all wishes. In its centre a mekhala or girdle should be made, and the height of the pedestal should be divided into 30 parts. (135). Make one part 'bhoogatam' or resting on the ground. The 1. मु. नहीं । मु. कणकं ।
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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