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देवतामूर्ति-प्रकरणम् Where there is a Bana-linga that is narrower at the top and broader at the base follows salvation. It leads also to the destruction (?elevation) of the world. (111). किसी भी प्रकार का बाणलिङ्ग पूजनीय
ह्रस्वं दीर्घ कृशं स्थूलं खण्डं कुब्जं च वामनम्। त्र्यसपीठं चतुरस्रं स्थूलाग्रं चक्रसंयुतम् ॥ ११२॥ . रेखा-कीलकसंयुक्तं सुवर्णं च निवर्णकम्। रक्तं कृष्णं तथा श्यामं पीतं शुक्लं च पाण्डुरम् । ११३ ॥ . सदोषगुणसंयुक्तं बाणं पूज्यं च नित्यशः। बलाल्लक्ष्मीं समाकृष्य भुज्यते बाणलिङ्गतः ॥ ११४ ॥ तस्माच्छतगुणं पुण्यं तत्संस्थापनघूजनात्। बाणलिङ्गं तथा पूज्यं तत्संस्थापनमुत्तमम् ॥ ११५ ॥
छोटा, लंबा, पतला, मोटा, खंडित हुआ, छोटे कद का, स्त्रियों की पीठ वाला, भारी पीठ वाला, स्थूल अग्र भाग वाला, चक्र वाला, रेखा और कीलक से युक्त, अच्छे वर्ण वाला, वर्ण रहित, लाल कृष्ण श्याम पीला और पांडुर वर्ण वाला, दोष वाला या गुण वाला इत्यादि किसी भी प्रकार का बाणलिङ्ग हमेशा पूजनीय है। बाणलिङ्ग का पूजन करने वाला बल पूर्वक लक्ष्मी प्राप्त करके उसका भोग करने वाला होता है। इसलिये बाणलिङ्ग की स्थापना करने से और पूजन करने से सौ गुणा पुण्य होता है। इसलिए बाणलिङ्ग की पूजा और स्थापना करना उत्तम है।
A Bana-linga which is either small, long, thin, fat, broken, or hunchbacked and dwarfish, with a three or four cornered pedestal, or with a heavy upper portion, and is endowed with circular markings (112); or lines, wedge or pin or column markings, and is beautiful in colour, or colourless, or red, black, dark or blue, yellow, white or pale in colour (113); whether it has faults 1. मु. षण्डं।