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देवतामूर्ति-प्रकरणम् प्रासाद और लिङ्ग की ऊँचाई के मान को आठ से गुण देना, जो गुणनफल आवे, उसके सत्तावीस से भाग देने से जो शेष बचे वह अश्विनी आदि नक्षत्र समझना। एक शेष बचे तो अश्विनी, दो शेष बचे तो भरणी, इस प्रकार सब समझना।
If the height or elevation (of the linga or temple) is multiplied by eight, and the resultant total divided by lwenty-seven, the remaining area should be regarded as Ashvini and the other constellations. If the remainder is onc, know it to be Ashvini, if two as Bharni and so on.(91). (This, is for astrology-linked calculations).
तस्कर आदि नव अंश
- नक्षत्रे च चतुर्गुणे ॥ ९१ ॥ .. नवभिर्हरणे शेष - मंशकं तस्करादिकम् । भुक्ति-मुक्ति-धनं राजा षण्डं चलाभयं विपत् । तस्करं वियत् षंडं तु निन्दितं च सुपाठकैः ॥ ९२ ॥
नक्षत्र को चार गुणा करके नव से भाग देना, जो शेष बचे उसे क्रम से तस्कर आदि नव अंश समझना। तस्कर, भुक्ति, मुक्ति, धन, राजा, पंड, चल, अभय
और विपत् ये नव अंश के नाम हैं। उनमें तस्कर, विपत् और षंड ये तीन अंश विद्वानों ने अशुभ माने हैं।
If this nakshatra or constellations area is multiplied by four, and the result divided by nine, the remainder should be regarded as Taskar and the other Anshakas or portions. (Anshak variously means a portion/ a degree of latitude or longitude/a solar day etc). These ninc Anshakas are Taskar, Bhukti, Mukti", Dhan,
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मु. चाभयकं वियत्। In works like Shilpa-Ratna and Kashyap-Shilpa, the terms Taskar, Mukti, Shakti appear in place of Taskar, Bhukti, Mukti.. .