________________
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
भी भाग का शिवलिङ्ग मध्यम मान का होता है । शिवलिङ्ग का एकबीस भाग करके उसमें से छ:, पाँच और चार भाग के विस्तार होते हैं । अर्थात् छः भाग के विस्तार वाला जयद, पांच भाग के विस्तार वाला पौष्टिक और चार भाग के विस्तार वाला सार्द्धकामक लिङ्ग होता है।
1
शिव लिङ्ग की लंबाई का एकबीस भाग करके छ:, पाँच और चार भाग का जयद आदि द्राविड़ जाति के लिङ्ग का विस्तार होता है।
|
For the Dravida category, divide the sanctum sanctorum into twenty-one portions. A linga which is to the scale of ten of these parts-ie. 10/21th, is a small Siva-linga, and one that is to the scale of thirteen parts-or 13/21th, is a Shreshtha or great linga. When the garbhgriha is divided into eight portions, a linga of any of these portions will, as stated before, be a Madhyam linga. (88).
173
On this scale of twenty-one parts, if the length of the linga is to the scale of six parts or five parts or four parts the resultant Siva-lingas are classified (as mentioned for the Nagar category), as Jayad, Paushtika and Sardhakamaka lingas of the Dravida category. (89).
वेसर लिङ्ग मान
वेसरे पञ्चपञ्चांशे गर्भाकारे विमानके ।
त्रयोदशांशकं हीने श्रेष्ठं कुर्याद् विचक्षणः ॥ ९० ॥
गर्भ के आकार के वेसर में प्रासाद गृह का पच्चीस भाग करना, इनमें से तेरह अंश हीन करने शेष रहे बारह अङ्क के मेल का विद्वान् श्रेष्ठ लिङ्ग बनावें ।
In the Veyasar category, the garbhgriha is divided into twenty-five parts. The wise should omit thirteen of these twenty-five parts and make the Shreshtha linga of the scale of the remaining twelve parts (ie. 12/25th of the sanctum sanctorum).(90).
प्रासाद और लिङ्ग के नक्षत्र
उत्सेधाष्टगुणे सप्तविंशभिर्हरणे ततः ॥
शेषमश्वयुजाद्यं तु —